२३७. टिप्पणियाँ
हिन्दी-हिन्दुस्तानी
सर टी॰ विजयराघवाचारी, ट्रिप्लिकेन, मद्रासके हिन्दू हाईस्कूलमें "भारतीय शिक्षामें हिन्दीका स्थान" पर सार्वजनिक भाषण दें, यह समयका संकेत है और पिछले सात वर्षोंसे हिन्दी के प्रचार करते आ रहे मद्रासके हिन्दी-प्रचार कार्यालयकी क्षमताका प्रमाण है। वक्ताको यह सिद्ध करनेमें कोई कठिनाई नहीं हुई कि यह तथ्य कि भारतके ३० करोड़ लोगोंमें से १२ करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं, शेष ८ करोड़ उसे समझते हैं और किसी भाषाको बोलनेवालों की संख्याकी दृष्टि से हिन्दीका स्थान संसारकी भाषाओंमें तीसरा है, "अपने-आपमें इस बातका एक सबल कारण प्रस्तुत करता है कि हर एकको हिन्दी सीखनी चाहिए।" सुधी-वक्ताका यह कथन सर्वथा सत्य था कि "इस भाषाको ठीकसे सीखने के लिए छः महीनेका समय काफी होगा।" उनका विचार था कि "भारतीय शिक्षा योजनामें हिन्दीको एक अनिवार्य स्थान प्राप्त होना चाहिए। यह स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालयकी अनिवार्य भाषा होनी चाहिए।" अन्तमें उन्होंने कहा:
दक्षिणके लोगोंको हिन्दी-प्रचार कार्यालयके माध्यमसे हिन्दी सीखनेकी सारी सुविधाएँ सुलभ हैं। यदि हमें अपने-अपने प्रान्तोंकी तरह अपने देशसे भी सच्चा प्रेम है तो हम सब अविलम्ब हिन्दी सीख लेंगे और अपनी जन-सभा अर्थात् अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें अपना सारा कार्य, अगर पूरा-पूरा नहीं तो मुख्यतः, अंग्रेजीमें चलाते समय हमें जो अपमानजनक स्थिति झेलनी पड़ती है, उससे हम अपनेको बचायेंगे। एक बात जो मैं अक्सर कहता आया हूँ, यहाँ एक बार फिर कहूँगा कि मेरे मनमें हिन्दीको प्रान्तीय भाषाओंके स्थानपर प्रतिष्ठित करनेकी बात नहीं है। मैं तो यह चाहता हूँ कि लोग अपनी-अपनी प्रान्तीय भाषाओंके अतिरिक्त हिन्दी भी सीखें ताकि ये प्रान्त एक-दूसरेसे जीवन्त सम्पर्क स्थापित कर पायें। इससे यह लाभ होना भी निश्चित है कि एक ओर तो प्रान्तीय भाषाएँ समृद्ध होंगी और दूसरी ओर हिन्दीका भण्डार भी पुष्ट होगा।
बारडोली — शान्तिको विजय
श्रीमती सरोजिनीदेवी से प्राप्त एक स्नेह-भरे पत्रका यह काव्यात्मक अंश उद्धृत करने योग्य है: