२४०. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको
आश्रम, साबरमती
२४ अगस्त, १९२८
तुम्हारा पत्र मिला। आगे एक विस्तृत पत्रकी आशा रखता हूँ।
बारडोलीकी विजय सचमुच सत्य और अहिंसाकी विजय थी। राजनीतिक क्षेत्र में अहिंसामें लोगोंकी निष्ठा समाप्त हो गई थी। इस विजयने उसे पुनः प्रतिष्ठित-सा कर दिया है। वल्लभभाईका व्यक्तित्व तो इस संघर्ष में इतना निखरा जितना पहले कभी नहीं निखरा था।
तुमने लिखा है कि साथमें गोपबन्धु दास पर एक लेख भेज रहा हूँ, मगर मुझे मिला तो कुछ नहीं है। उनकी मृत्युसे भारी क्षति हुई है। आत्मत्याग और आत्मविलोपनकी भावनासे काम करने में उड़ीसामें उनकी बराबरीका कोई आदमी नहीं है।
ग्रेगको मालूम नहीं था कि तुम इंग्लैंड जा चुके हो और अब वहाँसे अमेरिकाके लिए प्रस्थान करनेवाले हो। वे खुद भी नवम्बरमें अमेरिकाके लिए रवाना होंगे।
हम सभी आश्रमवासी मजेमें हैं। देवदास जामिया मिलियामें है। रसिक[१] और नवीन[२] अब वहाँ उसकी सहायताके लिए जा रहे हैं। आशा है तुम वहाँ काफी आराम करते होगे और वहाँसे तुम्हारे-जैसे स्वभावके व्यक्तिके लिए जितना सम्भव है उतने स्वस्थ होकर तो लौटोगे।
तुम नहीं चाहते कि तुम्हारे अमेरिकाके खर्चके लिए मैं और ज्यादा चन्दा करूँ, इस बातको मैंने ध्यान में रख लिया है। सरोजिनी नायडू सितम्बरमें अमेरिकाके लिए प्रस्थान करनेकी आशा रखती हैं।
सस्नेह,
तुम्हारा,
मोहन
श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूज
मार्फत — अमेरिकन एक्सप्रेस कं॰
६ हेमार्केट, लन्दन
अंग्रेजी (जी॰ एन॰ २६२९) की फोटो-नकलसे।