पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२४६

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२४१. पत्र: सर डैनियल हैमिल्टनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

मैं नहीं सोचता था कि आप अपना लेख इतनी जल्दी भेजेंगे। इसे मैंने पाँच अध्यायोंमें[१] बाँट दिया है, जिनमें से पहला तो प्रकाशित भी हो चुका है। उसकी प्रति मैं साथमें भेज रहा हूँ।

मैंने आपके लेख समालोचनार्थ सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासको दे दिये थे। उन्होंने मुझे बहुत साफगोईके साथ एक पत्र लिखा है। उनकी अनुमतिसे उसकी एक प्रति मैं आपको भेज रहा हूँ। विषय पर विशेष अधिकार न रखनेवाले किसी सामान्य व्यक्तिके इन विभिन्न दृष्टिकोणोंको समझ पाना कठिन है। यह बात मेरे लिए बराबर एक अनबूझ पहेली बनी रही है कि बुनियादी बातोंके बारेमें भी वित्त-विशेषज्ञोंके बीच उतना ही मतभेद क्यों होता है जितना कि वकीलों और डाक्टरोंमें होता है।

आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि बारडोली-संघर्ष सन्तोषजनक ढंगसे समाप्त हो गया है।

हृदयसे आपका,

संलग्न पत्र – १
सर डैनियल हैमिल्टन

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३२३८) की फोटो-नकलसे।

 

२४२. पत्र: विलियम एच॰ डॅनफोर्थको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२४ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

श्री वी॰ एन॰ बिरलाकी मार्फत भेजे आपके पत्र और अपने यहाँ तैयार की जानेवाली खाद्य-सामग्रीके पार्सलके लिए धन्यवाद। आपने अपने भारतके अनुभवों पर जो पुस्तक लिखी है, उसकी भी एक प्रति उन्होंने मुझे भेजी है।

मेरे खानेकी चीजोंकी सूची बहुत सीमित है और जिन चीजोंके बारेमें मुझे यह नहीं मालूम रहता कि ये किन पदार्थोंसे कैसे बनाई गई हैं, उन्हें मैं नहीं

 

  1. देखिए "सच्ची पूँजी और झूठी पूँजी", २३-८-१९२८।