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२४४. पत्र: छगनलाल जोशीको

२५ अगस्त, १९२८

भाईश्री छगनलाल,

चि॰ नवीनको देवदासके काममें हाथ बँटानेके लिए जामिया मिलिया भेजना है। अतः उसे चार महीने के लिए मुक्त कर देना। यदि उसे अधिक समय तक वहाँ रखनेकी आवश्यकता जान पड़ी तो इस बारेमें अवधि बीत जानेपर फिर विचार करेंगे। फिलहाल चि॰ रसिक तो खाली ही है। उसे भी दिल्ली जाना है। दोनों पिंजाई आदि भली भाँति सीख जायें इसलिए यह आवश्यक है कि वे थोड़े दिन वहाँ तालीम लें।

बापू

गुजराती (एस॰ एन॰ १४७६२) की माइक्रोफिल्मसे।

 

२४५. सत्याग्रहका उपयोग

वृद्ध-बाल-विवाह रोकनेके लिए अधीर एक मित्र लिखते हैं:

मुझे बहुत दिनोंसे ऐसा लग रहा है कि वृद्ध-बाल-विवाह रोकनेके लिए ज्यादा तीव्र शस्त्रोंका उपयोग करना चाहिए।
पच्चीस जवान चरित्रवान् सत्याग्रहियोंको अपनी एक मण्डली बनानी चाहिए। जहाँ कहीं ऐसे विवाह होनेवाले हों, वहाँ वे आठ-दस दिन पहले ही पहुँच जायें। वहाँ वे दोनों पक्षोंको समझायें; उस बिरादरीके लोगोंसे, पंचायतसे, नगरनिवासियोंसे, अधिकारियों-आदि सबसे प्रार्थना करें। वृद्ध-विवाह भयंकर पाप है, 'गरीब गायको कसाईके हाथसे बचाओ, गाँवमें होनेवाला जुल्म रोको,' जवानो, धर्म समझकर जागो और एक लड़कीकी जान बचाओ, आदि वाक्य तख्तियों पर और खादीके पर्दोपर लिखकर जुलूस निकालें। वे सारे शहर और खासकर उस मुहल्लेमें जहाँ कि विवाह होना हो, घूमें, सबको जाग्रत करें, और वृद्ध-विवाह के विरुद्ध इस तरह प्रचंड वातावरण खड़ा करें। वृद्ध-विवाह भारी पाप है – इस भावार्थके गीत भी गायें। और आठ दिनों तक न तो खुद ही चैन लें, और जबतक यह पाप दूर न हो, तबतक गाँव के लोगों को भी चैन न लेने दें। पूरी मेहनतके साथ ऐसी कोशिश करें कि उसके यहाँ कोई खाने न जाये, बराती भाग जायें और पुरोहित या पण्डित भी विवाह कराने न आयें। पूरी शांति बनायें रखें पर पीछे भी न हटें। वर या कन्यापक्ष अगर पुलिसकी सहायता माँगे और सरकार किसीको जेलकी सजा भी दे, तो वे खुशीसे जेल जायें परन्तु इस धार्मिक आन्दोलनसे कदापि पीछे न हटें।