पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१५
सत्याग्रहका उपयोग

 

ऐसा हो तो कुछ ही समयमें इस मंडलीका ऐसा प्रभाव पड़ेगा कि वृद्ध-विवाह करनेवाले अपने आप ही रुक जायेंगे।

यह सूचना लगती तो सुन्दर है मगर मुझे भय है कि इसके अमल एक से अधिक बार नहीं हो सकता। जहाँ एक ओर व्यभिचारी और दूसरी ओर लोभी आदमीकी जोड़ी मिल जाये, वहाँ कन्या-रूपी गायको कत्ल होने से रोकना लगभग असम्भव है। वृद्ध व्यभिचारी और लोभी बाप जब इस दलसे डर जायेंगे, तब वे पहलेसे विवाहकी खबर ही किसीको न लगने देंगे। ये चुपचाप विवाह कर लेंगे। विवाह करानेवाले तथाकथित ब्राह्मण और थोड़े-बहुत बराती भी सहज ही मिल जायेंगे। 'नवजीवन'के पाठकोंको याद होगा कि ऐसी एक घटना थोड़े ही दिन पहले हो चुकी है। इस घटनामें एक नन्हीं-सी छोटी लड़कीके साथ विवाह करनेवाले पुरुषने अपनी सारी विद्वत्ता और चतुराई खर्च कर डाली, सबको धोखा दिया। विवाह बन्द रखनेका ढोंग किया। अपना पाप स्वीकार किया। सुधारकोंसे माफी माँगी। सुधारक खुश हुए। उनके आनन्दका पार न रहा। और इस बीच मौका पाकर इस भाईने गुप्त रीतिसे विवाह कर डाला। जैसा इस मामले में हुआ वैसा अन्य मामलोंमें भी हो सकता है। इसलिए वृद्ध-बाल-विवाह जैसी कुरीतियोंको दूर करनेके लिए कुछ दूसरे ही उपाय सोचनेकी जरूरत है। मुझे लगता है कि व्यभिचारीपर असर डालनेकी बजाय, शायद लोभीपर असर डालना अधिक आसान होगा। बाल-विवाहके विरुद्ध अगर वातावरण खड़ा किया जा सके तो फिर सुधार अपने-आप ही हो सकेंगे और ऐसा करनेके लिए उन-उन स्थानोंमें शिक्षा देनेकी जरूरत है। यहाँ शिक्षासे मेरा आशय अक्षरज्ञान नहीं है। जो माँ-बाप लोभके वश होकर अपनी लड़कीको बेचनेको तैयार होते हैं, उनको ढूंढ़ना चाहिए, उनसे प्रार्थना करनी चाहिए, उन्हें समझाना चाहिए और उनकी जाति-पंचायतमें कन्या-विक्रयके विरुद्ध प्रस्ताव पास करवाने चाहिए। यह तो स्पष्ट ही है कि यह सारा काम कोई एक टोली विशाल क्षेत्र में नहीं कर सकती। चौबीसों घंटे काम करनेवाली, कन्याकुमारीमें रहनेवाली सत्याग्रहियोंकी मंडली काश्मीरमें होनेवाले बाल-विवाहको नहीं रोक सकेगी। समाज-सुधारके प्रेमी सत्याग्रहियोंको धीरज रखना पड़ेगा, छोटे क्षेत्रसे सन्तुष्ट रहना पड़ेगा, अपनी सीमा जान लेनी पड़ेगी। हम सारी दुनिया के काजी नहीं बन सकते।

प्रेम अथवा अहिंसाकी गति न्यारी है। इसे घाँधली, आडम्बर या ढोल-नगाड़ोंकी जरूरत नहीं होती। केवल आत्मविश्वासकी जरूरत होती है। और आत्म-विश्वास पैदा करनेके लिए आत्मशुद्धि होनी चाहिए। लोग ऐसे आदमियोंके वचनपर श्रद्धा रखेंगे जिन्होंने आत्मशुद्धि की होगी, और आसपासका वातावरण अपने-आप ही शुद्ध होगा। मैंने तो बहुत दिनोंसे माना है कि राजनीतिक हलचलकी अपेक्षा, समाज-सुधारका काम कहीं अधिक मुश्किल है। राजनीतिक आन्दोलनके लिए वातावरण तैयार है। उसमें लोगोंको दिलचस्पी है। मान्यता भी ऐसी है कि वह काम आन्तरिक शुद्धिके बिना भी हो सकता है। समाज-सुधारके काममें रुचि कम है। बाह्य परिणाम न-कुछ-जैसा ही लगता है और उसमें सम्मान-प्रतिष्ठा आदिका भी बहुत कम स्थान