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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। इसलिए समाज-सुधारकोंको काफी समय तक अपनी सतत तैयारी और बहुत-थोड़ी सफलता से ही सन्तुष्ट रहना पड़ेगा।

एक व्यावहारिक सूचना दे दूँ। वृद्ध-बाल-विवाहके विरुद्ध वातावरण तैयार करनेका कड़ा उपाय तो यह है कि हाल ही में हुए किसी विवाहके विरुद्ध लोकमत इकट्ठा किया जाये और वृद्ध पति तथा लोभी बापका अहिंसक बहिष्कार किया जाये। ऐसा एक भी शुद्ध बहिष्कार साधा जा सके तो सहज ही दूसरे माँ-बाप अपनी बेटीको बेचनेमें संकोच करेंगे, और बूढे विवाह करने से रुकेंगे।

वृद्ध व्यभिचारी अपनी विषय-वासनाको एकाएक छोड़नेवाला नहीं है। इसलिए अगर ऐसे आदमियोंको विवाह करना ही हो तो उन्हें विधवा-विवाह करनेको कहना चाहिए। यूरोपमें वृद्ध पुरुष सहज ही विधवाओंको ढूँढ़ लेते हैं।

अन्तमें हमें यह भी समझ लेना चाहिए कि हम वृद्ध-बाल-विवाहका विरोध करके करना क्या चाहते हैं। हम वृद्धके व्यभिचारको रोक नहीं सकते। अगर उसके व्यभिचारको ही रोकना हो तो जवानोंके व्यभिचारको भी रोकना चाहिए। किन्तु यह विषय अभी हमारी शक्तिके बाहरकी बात है, इसलिए इसे छोड़ देते हैं। वृद्धके बाल-विवाहके बारेमें सत्याग्रहका उद्देश्य लड़कीको बिकनेसे बचाना है। इसलिए सुधारकका काम कन्या-विक्रयको रोकना है। इसलिए कन्याके माँ-बापपर असर डालना है। इसलिए अपने निश्चित क्षेत्रमें जितनी कन्याएँ हों, सुधारकगण उनका नाम लिख रखें, उनके माता-पितासे परिचय कर लें, उन्हें अगर अपने कर्त्तव्यका भान न हो तो कन्याके प्रति माँ-बापका धर्म उन्हें समझानेका प्रयत्न करें। जो लोग इन शर्तोंको छोड़कर, इस पत्रमें वर्णित उपायोंको काममें लाना चाहेंगे उन्हें अपने प्रयत्नमें सफलता मिलनेकी बहुत कम सम्भावना है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २६-८-१९२८

 

२४६. टिप्पणियाँ
मैट्रिकुलेटोंका टिड्डी-दल

एक सज्जन पूछते हैं:[१]

यह एक सही सवाल है। इसका जवाब तो हम यहाँ अनेक बार दे चुके हैं। सरकारी शिक्षाकी छापका मोह हमें गुलाम बनाता है। इसीलिए मैंने सरकारी स्कूल छोड़नेका धर्म लोगोंके सामने रखा है। पर इस मोह-जालसे विद्यार्थियोंको कौन छुड़ाये? सरकारकी मुहरके बिना रिश्वत खाने लायक नौकरी कैसे मिले? जब तक विद्यार्थी

 

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। लेखकने मैट्रिक पास करनेवालों की बढ़ती हुई संख्याके आँकड़े देकर पूछा था कि इन्हें कहाँ तक नौकरी मिलेगी और मिलनेपर इनके तमाम शौक, प्राप्त होनेवाले थोड़े-से वेतनसे पूरे कैसे होंगे?