पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१७
टिप्पणियाँ

मजदूरीका, शारीरिक मेहनतका स्वागत नहीं करेंगे, उसे अक्षर-ज्ञानसे ज्यादा कीमती नहीं मानने लगेंगे, तबतक वे इस मोह-जालसे नहीं बच सकेंगे। चरखेको महत्त्व देनेका यह एक कारण तो है ही। चरखा शरीर-श्रमका व्यापक चिह्न है। 'नवजीवन'के पहले अंकमें एक चित्र दिया गया था, जिसमें हल और चरखेको स्थान दिया गया है। चरखेकी हालत सुधरते ही मजदूरी और चारित्र्ययुक्त गरीबीको उनके लायक जगह अपने-आप मिल जायेगी। इसका मतलब यह नहीं कि सब चरखेके द्वारा रोजी कमायें। फिर भी इसका यह आशय तो जरूर है कि सब किसी-न-किसी उत्पादक मजदूरीसे आजीविका प्राप्त करें। विद्यार्थियोंमें विलायती रहन-सहन और विलायती चीजोंका जो शौक बढ़ा है, उसके लिए स्कूलोंका वातावरण जिम्मेदार है। इस शौक से शायद ही कोई विद्यार्थी बचता है।

प्राइमस स्टोव से आग

एक पत्र लेखकने मुझे प्राइसम स्टोवके सम्बन्धमें यह लिखा है:[१]

यह कहा जा सकता है कि गुजराती स्त्रियोंमें प्राइमसका व्यवहार प्रायः सर्वत्र होता है। इस स्टोवकी जरूरत इतनी नहीं है जितनी मानी जाती है, यह बात मैं मानता हूँ। गुजराती साड़ीसे शोभा बढ़ती है यह निर्विवाद है, किन्तु काम करनेवाली स्त्रीको तो इससे असुविधा ही होती है। गुजराती स्त्रियोंमें स्टोवसे जो दुर्घटनाएँ होती हैं उनका कारण साड़ी है, यह बात ठीक जान पड़ती है। यदि मैं गुजराती बहनोंको समझा सकूँ तो मैं स्टोवके प्रति उनका मोह दूर कर दूँ और उन्हें इस बातके लिए प्रेरित करूँ कि वे बारडोलीकी वीर नारियोंका अनुकरण करके काम करते समय कछोटा लगाकर साड़ी पहनें। मेरे खयालसे यह कछोटा भी कम सुन्दर नहीं होता। उससे काम करनेमें तो पूरी सुविधाका अनुभव होता है। यदि गहराई से देखें तो यह कछोटा निर्दोष पहनावा है और स्त्रियोंकी अधिक रक्षा करता है। बारडोलीकी बहनें लटकती हुई साड़ी पहनकर अपने खेतोंमें काम नहीं कर सकतीं, इस बातकी सचाई जिसने भी उन्हें काम करते देखा है, वह तुरन्त सिद्ध कर सकता है।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २६-८-१९२८

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।