पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२५३

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२४९. पत्र: जेठालाल जोशीको

द्वितीय श्रावण सुदी ११ [२६ अगस्त, १९२८][१]

भाईश्री जेठालाल,

तुम्हारा पत्र मिला।

बच्चोंके बारेमें तुमने जो लिखा है वह ठीक है।

मलेरिया के बारेमें तुम्हारे सुझाव विचार करने लायक हैं।

बछड़ेके बारेमें सिर्फ अहिंसाका ही प्रश्न नहीं था। अहिंसाकी मेरी व्याख्याके अनुसार तो यह कहा ही नहीं जा सकता कि उसे मारनेमें हिंसा हुई। किन्तु प्रश्न तो यह था कि उसे मारना हमारा कर्त्तव्य था या नहीं। मुझे यह कर्त्तव्य जान पड़ा।

कुछ दिनोंके लिए तो तुम्हें पूनियाँ मिल सकती हैं किन्तु [पूनी बनाना तुम्हें] जल्दी से जल्दी सीख लेना चाहिए।

मोहनदासके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ १३४६) की फोटो-नकलसे।

 

२५०. पत्र: मणिलाल और सुशीला गांधीको

२७ अगस्त, १९२८

चि॰ मणिलाल और सुशीला,

तुम्हारे पत्र मिले। बालूभाईके बारेमें तो तुम्हें पूरे समाचार मिलेंगे ही इसलिए मैं कुछ नहीं लिख रहा हूँ। यदि हम अपने सज्जन सम्बन्धियोंके गुणोंका स्मरण कर उन्हें अपने जीवनमें उतारें तो देहका अन्त हो जानेपर भी वे जीते रहते हैं और समाजकी निरन्तर उन्नति होती है। सामान्यतः इसका उलटा ही देखनेमें आता है, यह हमारी कमजोरी है। स्वार्थके वशीभूत होकर अपने सम्बन्धियोंकी मृत्युका दुखड़ा रोकर ही हम अपने-आपको कृतार्थ हुआ मान लेते हैं और समझते हैं कि हमने अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया। किन्तु यदि हम मृत्युको उसी रूपमें लें जैसा कि मैंने बताया है तो हम उसके लिए कभी शोक नहीं करेंगे बल्कि उसे अपनी आत्मशुद्धिका कारण बनायेंगे।

 

  1. आश्रम में बीमार बछड़े को मारनेका उल्लेख होनेके आधारपर इसका वर्ष निर्धारित किया गया है।