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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

रामदास कल बारडोली वापस चला गया। अब वह वहीं स्थिर होकर रचनात्मक कार्यों में भाग लेना चाहता है। स्थिर हो जानेपर निमूको[१] बुला लेगा। नवीन और रसिक देवदासके काममें हाथ बँटानेके लिए कुछ ही दिनोंमें दिल्ली चले जायेंगे।

हम सभी कुशलपूर्वक हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ४७४३) की फोटो-नकलसे।

 

२५१. पत्र: वसुमती पण्डितको

मौनवार [२७ अगस्त, १९२८][२]

चि॰ वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला। हकीम और डाक्टरके बिल चुका देना। बिल कब कितनेका बनेगा, यह तुम्हें पहलेसे ही जान लेना चाहिए। यदि वहाँ तुम्हारी तबीयत सुधर ही न रही हो तो तुम्हारा यहाँ चला आना ही ठीक होगा। विद्यावतीजीसे कहना कि तुम्हारा वहाँ बोझ बनकर रहनेकी बजाय आश्रम लौट आना ही उचित होगा। तबीयत बिलकुल ठीक हो जानेके बाद यदि जाना आवश्यक हो तो फिर वापिस जा सकती हो। या फिर वहाँसे वे किसी विद्यार्थीको यहाँ भेज सकते हैं और वह काम सीखकर लौट जायेगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस॰ एन॰ ९२५१) की फोटो-नकलसे।

 

२५२. पत्र: पेरीन कैप्टेनको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२८ अगस्त, १९२८

प्रिय बहन,[३]

तुम्हारा पत्र मिला। मैं तुम्हारे पत्रोंके बारेमें 'यंग इंडिया' के आगामी अंक में लिखनेका इरादा रखता हूँ।[४]

नारणदासने आश्रमके मालकी सूची तुम्हें अवश्य भेज दी होगी।

 

  1. रामदास गांधीकी पत्नी।
  2. ढाककी मुहरसे।
  3. साधन-सूत्रमें सम्बोधन गुजराती में है।
  4. देखिए "टिप्पणियां", १३-९-१९२८ का उपशीर्षक 'राष्ट्रीय स्त्री-सभा और खादी'।