२५५. पत्र: वरदाचारीको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२८ अगस्त, १९२८
संलग्न पत्र और मेरे उत्तरमें सारी बातें स्पष्ट हैं। पत्रलेखकने जो शिकायत की है, सुब्बैया उसकी पुष्टि करता है और कहता है कि तमिलनाड खादी-भण्डार यज्ञकी भावनासे स्वैच्छिक कताई करनेवालों को प्रोत्साहन नहीं देता। ऐसा नहीं होना चाहिए।
हृदयसे आपका,
संलग्न: १
अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६७४) की माइक्रोफिल्मसे।
२५६. पत्र: आर॰ दोराइस्वामीको
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२८ अगस्त, १९२८
आपका पत्र मिला। मुझे आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर दिलाना चाहिए कि 'कतैये' की मेरी परिभाषा यज्ञकी भावनासे कातनेवालों पर लागू होती है, पारिश्रमिकके लिए कातनेवालों पर नहीं। मैं अनुभवसे जानता हूँ कि यदि कोई व्यक्ति स्वयं घुनाई करना चाहे तो उसमें ज्यादा समय नहीं लगेगा और जो लोग कताईसे प्रेम होनेके कारण कातते हैं, उन्हें सामान्यत: थोड़ी धुनाई करनेका समय भी निकाल सकना चाहिए। मैंने खुद धुनाई की है, हालाँकि अपने समयका प्रत्येक मिनट बचानेकी खातिर अब मैंने ऐसा करना छोड़ दिया है, क्योंकि मुझे पूनियाँ देनेवाले बहुत-से लोग हैं। और हालाँकि मैं अभी बहुत कमजोर हूँ फिर भी सही परिणाम पानेके विचारसे, मैं अपनी जरूरतकी रुईकी धुनाई खुद ही करने और उसके परिणामको 'यंग इंडिया' में प्रकाशित करनेका इरादा रखता हूँ। आपको तमिलनाड शाखासे और सत्याग्रह आश्रम अथवा बारडोलीसे भी तकुए भेजे जाने चाहिए। तथापि अपरिमित संख्या में बिलकुल निर्दोष तकुए प्राप्त कर सकना अत्यन्त कठिन काम है, क्योंकि उनको सीधा करनेका काम करनेवालों की आँखों पर बहुत जोर पड़ता है — यहाँ तक कि एक व्यक्ति, जो प्रतिदिन ६० तकुए सीधा किया करता था, अपनी दृष्टि लगभग खो ही बैठा था। इसलिए निर्दोष तकुए चाहनेवालों को आश्रम और बारडोली अधिक