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२५८. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२८ अगस्त, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

आपका पत्र मिला। पूजा-प्रदर्शनीके बारेमें मुझे तो कुछ कहनेकी जरूरत ही नहीं है। उसमें आपको जैसा उचित लगे, वैसा कर लीजिएगा।

आपने आहारके सम्बन्धमें सोदपुरमें जो परिवर्तन किया है, मुझे उम्मीद है, वह लोगोंके लिए बहुत कठिन नहीं होगा। अनावश्यक जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। जो बात गुजरात में मुश्किलसे सम्भव है, हो सकता है, वह बंगाल में लगभग असम्भव ही हो।

आप यहाँ पानीकी जो व्यवस्था कर गये थे, वह अच्छी तरह काम दे रही है। लेकिन इसमें पानी जल्दी खत्म हो जाता है। मालूम नहीं कि टंकियाँ खुली रखनी चाहिए अथवा नहीं। और क्या समय-समयपर उनकी सफाई नहीं की जानी चाहिए? और यदि की जानी चाहिए तो क्या यह बहुत मेहनतका काम नहीं है? क्या आप इसके बारेमें कुछ निर्देश देना चाहेंगे?

मुझे यह जानकर बड़ी खुशी होती है कि आपकी और श्री बिड़लाकी अच्छी निभ रही है। जहाँतक पैसेका सवाल है, इससे आपके मनपर से एक भारी बोझ हट गया होगा।

हाँ, यदि आप ऐसा चरखा बना सकें जिसपर ज्यादा सूत काता जा सके तो इससे हमें निस्सन्देह बहुत लाभ होगा।

हेमप्रभा देवी कैसी है?

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३४९८) की फोटो-नकलसे।  
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