पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२५९. पत्र: के॰ एस॰ कारन्तको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२८ अगस्त, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। मुझे तो इस प्रश्नका हल अत्यन्त आसान लगता है। उसमें जिस जीवनका उल्लेख है, वह ब्राह्मणोचित जीवन है। वहाँ ब्राह्मण शब्द वर्ण-विशेषका द्योतक नहीं, अपितु वह ब्राह्मणकी मनोभूमिकाका सूचक है। ब्राह्मण वह है जो ब्रह्मको जानता है और एक शूद्रके लिए भी आत्मज्ञानको प्राप्ति सम्भव है। और जब वह उस ज्ञानको प्राप्त कर लेता है तब वास्तविक ब्राह्मणत्वकी अवस्थाको प्राप्त हो जाता है, और ब्राह्मण-वंशमें उत्पन्न व्यक्ति भी यदि ब्रह्म-ज्ञानसे रहित हो तो वह किसी योग्य नहीं है।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत के॰ एस॰ कारन्त
वसन्त
डाक रवाना‒कोडाइबेल
मंगलोर

अंग्रेजी ( एस० एन० १३४९९) की फोटो-नकलसे ।

 

२६०. पत्र: रोहिणी पूर्वयाको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२८ अगस्त, १९२८

प्रिय रोहिणी,

तुम्हारा पत्र पाकर मुझे बहुत खुशी हुई। मुझे खुशी है कि अब तुम्हें एक निश्चित नौकरी मिल गई है। आशा है, तुम्हें वह स्थान छोड़ना नहीं पड़ेगा।

सामूहिक रसोई घर बहुत मजेमें चल रहा है, हालांकि हमें अब भी प्रतिदिन बहुत ही कठिन समस्याओंका सामना और समाधान करना पड़ता है। इसमें कुल मिला कर लगभग १६० व्यक्ति खाते हैं। वैतनिक कर्मचारियोंके बिना इतना बड़ा रसोई-घर चलाना कोई छोटी बात नहीं है।