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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

राजेन्द्र बाबुके रिश्तेदारों और अनेक मित्रोंको इन सज्जनोंको अपनी जान पर खेलकर बहादुरीके साथ उनकी जानकी रक्षा करनेके लिए धन्यवाद देना चाहिए। यह घटना मनुष्य स्वभावकी एकताको दिखलाती है और सिद्ध करती है कि नम्रता, आत्मत्याग और उदारता किसी एक धर्म या जातिकी विरासत नहीं है।

मगर इस पत्रका सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग तो वह है जिसमें यूरोप जानेवालोंको चेतावनी दी गई है। इसमें कोई शक नहीं कि यूरोपीय देशोंके सभी दलोंकी यह इच्छा रहती है वे वहाँ जानेवाले हिन्दुस्तानियों – खासकर हिन्दुस्तानके सार्वजनिक जीवनमें अच्छा स्थान रखनेवाले हिन्दुस्तानियों — से अपना मतलब पूरा करनेके लिए नाजायज फायदा उठायें। इसलिए शेक्सपीयरकी यह सलाह याद रखना अच्छी बात है कि 'सुन सबकी लो, मगर अपनी कहो किसीसे नहीं'। यूरोप जानेवाले हिन्दुस्तानियोंमें यह प्रशंसनीय भाव तो जरूर ही रहता होगा कि वहाँकी सभाओंमें कुछ बोलकर हिन्दुस्तान के पक्षका प्रचार किया जाये। मगर यह याद रखना बहुत अच्छा होगा कि हर बातमें आदर्श आत्मसंयम रखनेसे हिन्दुस्तानके पक्षका जितना प्रचार हो सकेगा, उतना हजारों भाषणोंसे भी नहीं होगा। चरित्रका असर, हमेशा ही, भाषणसे कहीं अधिक पड़ता है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ३०-८-१९२८