२६२. टिप्पणियाँ
खादीके लिए एक विज्ञापन-विभागकी आवश्यकता
अखिल भारतीय चरखा-संघके बम्बई-स्थित खादी-भण्डारके श्रीयुत विट्ठलदास जेराजाणीको एक भाई अपने एक पत्रमें लिखते हैं[१]:
पत्र-लेखकके आरोपमें बहुत सचाई है। अखिल भारतीय चरखा-संघने विज्ञापन जैसे बाहरी प्रयत्नोंकी अपेक्षा आन्तरिक संगठनको ही पूर्ण और निर्दोष बनानेकी ओर अधिक ध्यान दिया है। उसका खयाल यह रहा है कि आन्तरिक संगठनका पूर्ण और निर्दोष होना अपने-आपमें खादीका एक विज्ञापन होगा। इसलिए संघने प्रचार-कार्य पर पैसा खर्च करनेमें कृपणतासे काम लिया है। लेकिन यदि खादी-प्रेमी लोग प्रचार-कार्यके खर्चके लिए चन्दा देने में पर्याप्त उत्साह दिखायें तो मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि संघकी परिषद् इस कामको खुशी-खुशी अपने हाथमें लेगी। लेकिन ध्यान रहे कि प्रचार-कार्यका संगठन ठीक ढंगसे करने में काफी खर्च बैठता है। आम तौर पर विज्ञापनपर होनेवाला खर्च विज्ञापित वस्तुओंके मूल्यमें शामिल कर लिया जाता है। अखिल भारतीय चरखा-संघको इस तरहसे खादीका मूल्य बढ़ाना पसन्द नहीं रहा है। इसलिए यदि प्रचार कार्यका संगठन करना है तो यह आवश्यक है कि इसका खर्च वे लोग उठायें जो खादीके गुणोंको समझते हैं और जिनके पास खर्च उठानेके साधन हैं। इसलिए यदि ऐसे और भी लोग हों जो इन पत्र-लेखक भाईकी तरह प्रचार-विभागके खर्चका बोझ उठाने को तैयार हों तो वे इस उद्देश्यके लिए चन्दा भेजें। यदि इस कामके लिए काफी पैसा नहीं आया तो दाता लोगोंकी इच्छा होनेपर उनके चन्देकी रकमें उन्हें वापस कर दी जायेंगी।
मैसूर राज्यमें चरखा
अखिल भारतीय चरखा-संघके श्रीयुत पुजारी मैसूर राज्यके अधिकारियोंको वहाँकी जनताके बीच हाथ-कताईका संगठन करनेमें सहायता दे रहे हैं। उन्होंने मुझे एक पत्र भेजा है जिसमें से निम्नलिखित जानकारी मैं यहाँ दे रहा हूँ:
- ↑ इसका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने भण्डारसे खरीदी खादीकी प्रशंसा करते हुए लिखा था कि खादीका सन्देश बहुत कम लोगोंतक पहुँच पाया है और विज्ञापनके मामले में यह आन्दोलन बहुत पिछड़ा हुआ है। प्रान्त में खादीकी दुकानें भी बहुत कम हैं। अतएव यदि एक विज्ञापन-विभाग खोला जाये तो अच्छा हो। इस काम में लगाया पैसा बेकार नहीं जायेगा। पत्र-लेखकने यह भी लिखा था कि जब कभी ऐसा विभाग खोलनेका निर्णय हो, मैं चन्देमें १०० रुपये दूँगा।