पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३१
टिप्पणियाँ

करनेका आरोप लगा बैठी हैं, क्योंकि इस देशका हर आदमी, बल्कि दसमें से एक आदमी भी, बैलोंके साथ दुर्व्यवहार नहीं करता। फिर भी, इसमें सन्देह नहीं कि कुछ शहरी गाड़ीवान इस पत्रमें उल्लिखित दुर्व्यवहारके दोषी हैं, और इसमें भी कोई शक नहीं कि जो लोग उन्हें बैलोंके साथ ऐसा व्यवहार करते देखते हैं, वे उस ओर तनिक भी ध्यान दिये बिना मजेसे अपनी राह चले जाते हैं। मुर्गियोंको निर्दयतापूर्ण ढंगसे ले जानेके बारेमें भी पत्र-लेखिकाकी बात सही है। अहिंसाकी दुहाई देनेवाले हम लोगोंके लिए यह कहा जा सकता है कि हम गुड़ तो खाते हैं, मगर गुलगुलोंसे परहेज करते हैं। यदि किसी पागल कुत्तेको गोली मार दी जाये तब तो हम उत्तेजित हो उठेंगे, लेकिन उद्धृत पत्रमें जिन निर्दयतापूर्ण व्यवहारोंका उल्लेख हुआ है वैसे व्यवहार देखकर हमें खुशी भले ही न हो, लेकिन उस ओर से हम उदासीन तो रहते ही हैं। हम ऐसा मानते जान पड़ते हैं कि जबतक हम वास्तवमें किसीको जानसे नहीं मारते तब तक अहिंसा-धर्मका पालन कर रहे हैं। मेरे विचारसे यह अहिंसा-धर्मका उपहास करना है। किसी भी प्राणीको किसी प्रकारका कष्ट पहुँचाना अहिंसा-धर्मका उल्लंघन है। और जहाँ हम अहिंसात्मक तरीकोंसे उसे उस कष्टसे बचा सकते हैं वहाँ यदि हम उसे बचानेका प्रयत्न नहीं करते और इस तरह एक प्रकारसे उस कष्ट पहुँचानेवाले व्यक्तिकी कार्रवाईका समर्थन करते हैं तो यह भी उस धर्मका उल्लंघन है। जो धार्मिक संगठन अपने विश्वासोंके प्रति ईमानदार रहना चाहते हैं उनके लिए यहाँ काम करनेका यह एक बड़ा क्षेत्र पड़ा हुआ है। वे नगरोंमें मानवेतर प्राणियोंके साथ किये जानेवाले निर्दयतापूर्ण व्यवहारके खिलाफ जिहाद बोलें। जुएके बजाय घोड़ेके-जैसे साजका प्रयोग भी, निस्सन्देह, वांछनीय है।

खादीधारियोंवाला उच्च विद्यालय

चटगांववासी डॉ॰ बी॰ पी॰ दत्तने एक ऐसे उच्च विद्यालयके बारेमें, जिसके सभी विद्यार्थी और शिक्षक गत चार वर्षोंसे खादी पहनते हैं, निम्नलिखित विवरण[१] भेजा है:

बरार — १८९७ में

मेजर आर॰ वी॰ गैरेट, हैदराबाद द्वारा अंग्रेजोंको दे दिये गये इलाके में सुती वस्त्रों पर लिखे अपने १८९७के एक निबन्धमें कहते हैं:

बरार रुईके लिए प्रसिद्ध है, लेकिन निश्चय ही सूती वस्त्रों के लिए नहीं। यहाँ मुख्यतः मोटे और घटिया किस्म के ऐसे कपड़े ही तैयार होते हैं जिन्हें गरीब लोग पहनते हैं।

 

  1. इसका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें दुर्गापुर उच्च विद्यालय, चटगांवके सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों द्वारा खादीके पूर्णतः अपना लिये जानेका हाल बताते हुए, आसपासके गाँवोंपर पड़नेवाले उसके कल्याणकारी प्रभावको चर्चा की गई थी। विवरणमें विद्यालयको कृषि-विषयक प्रवृत्तियों और एक गोशाला और कारखाना खोलने की योजनाके सम्बन्ध में भी बताया गया था।