पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/२७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृष्टिमें कोई व्यक्ति हो तो मुझे बताना। फिर भी, तुमने जो कहा है, उसे मैं ध्यान में रखूंगा और तुम जिस तरहका शिक्षक चाहते हो, यदि वैसा कोई मुझे मिला तो मैं तुम्हें सूचित करूँगा।

मैं समझता हूँ कि वहाँ तुम्हारा काम खूब अच्छी तरह चल रहा होगा। अगली बार आश्रम आने पर तुम उसे कुछ-कुछ बदला हुआ पाओगे। अब हमारे पास करीब-करीब एक ही बहुत बड़ा रसोई-घर है, जिसमें १५० स्त्री-पुरुष और बच्चे भोजन करते हैं।

हृदयसे तुम्हारा,
बापू

[पुनश्च:]

पूछताछ करनेके बाद मुझे मालूम हुआ कि जमनालालजी द्वारा एक नाम तुम्हें पहले ही भेजा जा चुका है।

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६७९) की माइक्रोफिल्मसे।

 

२६८. पत्र : बी॰ डब्ल्यू॰ टकरको[१]

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१ सितम्बर, १९२८

प्रिय बॉयड,

आपका पत्र कुछ दिनोंसे मेरी फाइलमें पड़ा हुआ था। मेरा खयाल है कि आपने मेरी स्थितिको काफी हद तक सही रूप में व्यक्त किया है। इसमें एक ही दोष है और वह यह कि आपने जिस ढंगसे उसे प्रस्तुत किया है, उससे गलतफहमी हो सकती है। मैंने यह नहीं कहा था कि मैं नहीं चाहूँगा कि लोग मेरे दृष्टिकोणको स्वीकार करें। मैंने यह अवश्य कहा था कि मैं नहीं चाहूँगा कि लोग मेरे धर्मको स्वीकार करें। स्पष्ट है कि आपने दृष्टिकोण शब्दका प्रयोग धर्म शब्दके पर्यायके रूप में किया है। मैं ऐसा नहीं करता। जहाँ मैं दूसरों पर अपना धर्म नहीं थोपना चाहूँगा, वहाँ अपना दृष्टिकोण स्वीकार करनेके

 

  1. यह रेवरेंड टकरके १५ अगस्तके पत्र एस॰ एन॰ १३४९१ के उत्तर में लिखा गया था। उस पत्रमें रेवरेंड टकरने लिखा था कि “गत जनवरो महीने में साबरमती हुई अन्तर्राष्ट्रीय मैत्री परिषद्में उठाये गये एक प्रश्नके बारे में अगर आप कुछ और खुलासा कर सकें तो आभार मानूँगा। इसका सम्बन्ध आपके इस कथनसे है कि किसी विशेष धार्मिक समुदायके अथवा कुछ विशेष धार्मिक विचार रखनेवाले लोगोंको ऐसा बिलकुल नहीं सोचना चाहिए कि दूसरे लोग भी उनके दृष्टिकोणको स्वीकार करें। हो सकता है, मैं आपकी बात यहाँ बिलकुल ठीक-ठीक न रख पाया होऊँ, लेकिन जहाँ तक मुझे याद है, आपने यह बात और भी जोरसे कही हो तो कोई अचरज नहीं।" . . .परिषद् में गांधीजो की बातचीत के लिए देखिए खण्ड ३५, पृष्ठ ४७२-८२।