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पत्र: बी॰ डब्ल्यू॰ टकरको

लिए अवश्य आग्रह करूंगा, जैसा कि हममें से हरएक करेगा। धर्म तो भावना अथवा हृदयकी वस्तु है और इसलिए यह तर्कका विषय नहीं है और मुझे हर व्यक्तिकी भावना अपनी ही भावनाके समान प्रिय होगी, क्योंकि मैं दूसरे लोगोंसे भी यही अपेक्षा करता हूँ कि वह मेरी भावनाका उतना ही खयाल रखे जितना खुद अपनी भावनाका रखता है। दृष्टिकोण तर्कका, मस्तिष्कका, बुद्धिका विषय है। यह हृदयको छुए बिना समय-समय पर बदलता रह सकता है। धर्म परिवर्तनका मतलब अपनी सम्पूर्ण स्थितिका परिवर्तन है। दृष्टिकोणमें परिवर्तन होना तो एक संयोग मात्र है जो बहुधा बाहरी कारणोंसे होता है। ईश्वरके अस्तित्वके बारेमें मेरी जो भावना है, वह आसानीसे नहीं बदल सकती। ईश्वर शब्दके अर्थके सम्बन्ध में मेरा दृष्टिकोण समय-समयपर बदलता रह सकता है और मेरी तर्कबुद्धि के विकास के साथ-साथ उसमें भी विकास हो सकता है। धर्म व्याख्यासे परे है और कोई व्यक्ति किसीके धार्मिक मामले में दखल दे, यह बात मुझे उद्धततापूर्ण जान पड़ती है। दृष्टिकोणकी हमेशा व्याख्या की जा सकनी चाहिए। मैंने यह भेद इसलिए किया है कि इस तरह मैं धर्मके बारेमें अपनी स्थिति सबसे ज्यादा अच्छी तरहसे स्पष्ट कर सकता हूँ। मैं नहीं चाहता कि आप हिन्दू बन जायें। लेकिन मैं यह अवश्व चाहता हूँ कि आप हिन्दू धर्ममें जो भी अच्छाइयाँ हैं और जो आपके ईसाई धर्ममें उस सीमा तक अथवा बिलकुल भी नहीं हैं, उन्हें ग्रहण कर एक बेहतर ईसाई बनें। मैं अपने आपको हिन्दू कहने और हिन्दू बने रहने में हर्षका अनुभव क्यों करता हूँ यह मैं नहीं बता सकता; लेकिन मेरा हिन्दू बना रहना इस्लाममें अथवा संसारके अन्य धर्मोंमें जो भी अच्छा और सौम्य-सुन्दर है, उसे ग्रहण करनेमें बाधक नहीं है।

पता नहीं, मैं आपको अपनी स्थिति अच्छी तरहसे समझा पाया हूँ या नहीं। यदि नहीं तो कृपया लिखें।

आपने बारडोलीके बारेमें जो कुछ कहा है, वह सब सच है।

हृदयसे आपका,

रेवरेंड बी॰ डब्ल्यू॰ टकर
प्रिंसिपल, कॉलिन्स हाईस्कूल
१४०, धर्मतल्ला स्ट्रीट
कलकत्ता

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५०५) की फोटो-नकलसे।