हूँ कि वे श्री नगीनदासको कष्ट न दें। पाठक देखेंगे कि उन्होंने अपने दानके उपयोग पर कोई नियंत्रण नहीं रखा है।
[गुजरातीसे]
नवजीवन, २-९-१९२८
२७२. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको
२ सितम्बर, १९२८
पंचगनीमें प्लेगका होना हमारे लिए शर्मकी बात है। एक सुन्दर स्वास्थ्यप्रद स्थानको हमने अपने रहन-सहनकी [बुरी] आदतोंसे गन्दा बना दिया है। और अब उस स्थानको इस महामारीसे मुक्त कर देनेकी शक्ति या साहस हममें नहीं है।
[गुजरातीसे]
बानुनी प्रसादी
२७३. पत्र: ब्रजकृष्ण चाँदीवालाको
२ सितम्बर, १९२८
तुमारे खत तो मीले परंतु उत्तर लीखनेका वखत ही कम रहता है यद्यपि आजकल तीन बजे उठता हूँ।
कहीं भी खानेके लीये जांय परंतु हमारे नियमको न छोड़ें और मित्रको कष्ट भी न दें इसलीये मित्रके वहां जाकर जो हमारे लीये खाद्य वस्तु उसीको खा लेवें। कमसे-कम भात या रोटी तो रहेते ही है। बस इसीको नमकके साथ खा लें और मित्रका अनुग्रह माने। बारडोलीके पैसेके बारेमें मैं लाला शंकरलालको लिखुंगा। तुमारा स्वास्थ कैसा है।
बापूके आशीर्वाद
जी॰ एन॰ २३५८ की फोटो-नकलसे।