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उत्कलकी सहायता करें
इसमें तो हमारे उत्पादन केन्द्र, बिक्री व्यवस्था, देखरेखके प्रबन्ध आदि पर होनेवाले खर्चके लिए मुश्किलसे रुपये में एक आना बचता है। आप जब पिछली बार उत्कल आये थे, तब आपने हमसे कहा था कि बिक्रीके सवालको लेकर कोई चिन्ता न करें, बल्कि अपनी समस्त शक्ति मुख्यतः उत्पादन कार्यमें लगायें। मैंने अखिल भारतीय चरखा संघके मन्त्रीसे हमारे यहाँ पड़ी खादीको बेचनेमें मदद देनेका अनुरोध किया है। यदि आप यह समझें कि 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें इसकी चर्चा उठानेसे हमें कोई लाभ हो सकता है तो आप कृपया वैसा करें।

खादीमें और जनतामें विश्वास रखनेके कारण मैंने पिछले वर्ष अपनी उत्कल-यात्राके दौरान निरंजन बाबूसे यह अवश्य कहा था कि वे अपना सारा ध्यान उत्पादनकी ओर लगायें। मेरे लिए उन नर-कंकालोंकी भावशून्य आँखोंको देखना और चुपचाप खड़े रहना सम्भव नहीं था, जबकि हमारे पास उनके लिए काम था। पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उत्कलकी खादी सम्भवतः गुजरातको छोड़कर किसी अन्य प्रान्तकी खादीसे सस्ती नहीं है। उसका कारण यह है कि किसी अन्य प्रान्तकी बनिस्बत यहाँके लोग ज्यादा असहाय हैं और इसीलिए हर नई चीजको शुरू करने पर यहाँ सामान्य परिस्थितियोंवाले क्षेत्रोंकी अपेक्षा ज्यादा खर्च बैठता है। लेकिन कोशिश यही है कि कार्यकुशलता और उत्पादनमें वृद्धि होनेके साथ-साथ कीमतोंमें कमी लाई जाये। इस बीच हमें लोगोंसे उनकी परोपकार और देश-भक्तिकी भावनाके नामपर यह अपील करनी चाहिए कि वे इस खादीको खरीदकर उड़ीसाके कंगालोंकी मदद करें। पत्रमें लागत व्ययका जो विश्लेषण किया गया है, उससे पता चलता है कि अधिकांश पैसा सीधे गरीबोंकी जेबोंमें जाता है। रु॰ ६-११-६ में से केवल ७ आने ४ पाई ही ऊपरी खर्चमें जाते हैं, और यह पैसा भी तो आखिरकार खादी-सेवासे सम्बद्ध उन मध्यमवर्गीय कार्यकर्त्ताओंके ही हाथोंमें जाता है। इस तरह खादीके उत्पादनमें जहाँ जितना खर्च किया जाना चाहिए उससे कुछ भी अधिक खर्च नहीं किया जाता है। दूसरी ओर खादी-उत्पादनका मतलब है देशकी सम्पत्तिमें थोड़ी ही सही, किन्तु सच्ची अभिवृद्धि करना और देशके उन ईमानदार मध्यमवर्गीय युवकोंको जो अंग्रेजी स्कूलोंमें पढ़े बिना, ज्यादा बड़ी उपाधि नहीं तो कमसे-कम मैट्रिकुलेशनका प्रमाणपत्र प्राप्त किये बिना, अन्यत्र कोई रोजगार नहीं पा सकते, एक सम्मानजनक रोजगार सुलभ कराना है। जो खादी पड़ी हुई है, उसे खपानेमें