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२७६. हमारी गरीबी

हालमें इस पत्रमें भारतकी गरीबीके सम्बन्धमें प्रोफेसर सी॰ एन॰ वकीलके कुछ लेख प्रकाशित हुए थे। लेख बड़े मनोयोगपूर्वक और सुन्दर ढंगसे लिखे गये थे और मुझे आशा है, पाठकोंने उन्हें अवश्य पढ़ा होगा। बात यह हुई कि प्रोफेसर सैम हिगिनबॉटमने मुझे एक परिपत्र भेजा था, जिसमें निम्नलिखित चार सवाल पूछे गये थे:

  1. गरीबीकी कसौटियाँ क्या हैं?
  2. अबसे २५ वर्ष पूर्व या उससे भी पहलेकी तुलनामें आज भारत गरीब है या सम्पन्न?
  3. भारतमें गरीबी सार्वत्रिक है या किन्हीं खास समुदायों तक सीमित है?
  4. गरीबीके कारण क्या हैं और उसे दूर करनेके कौन-से उपाय हैं?

मुझे तो इस विषयका सामान्य ज्ञान ही है। इसलिए मैं जो भी उत्तर देता वे ऐसे नहीं होते कि आलोचकोंको जँच सकें। निदान, मैंने ये महत्त्वपूर्ण और उपयुक्त सवाल अर्थशास्त्री मित्रोंके पास भेज दिये और उनसे अनुरोध किया कि अगर वे इस कामके लिए थोड़ा समय निकाल सकें तो किचित् विस्तारसे इनके उत्तर देनेकी कृपा करें। उत्तरमें प्रोफेसर वकीलने बहुत ही जल्दी वे लेख भेज दिये जिनकी ओर मैंने अभी पाठकोंका ध्यान दिलाया है। यह लेख-माला अभी वास्तवमें समाप्त नहीं हुई है। जब मैंने आखिरी परिच्छेद, जिसमें गरीबीको दूर करनेके उपायों पर विचार किया गया है, पढ़ा तो पाया कि विषयके सही और सम्यक् निरूपणके लिए इस परिच्छेदको दोबारा लिखनेकी जरूरत है। अब मैं प्रोफेसर वकीलसे यह आग्रह कर रहा हूँ कि अगर वे समय निकाल सकें और लिखनेका मन हो तो इस परिच्छेदको फिरसे लिखनेकी कृपा करें। अगर वे मुझे कुछ भेजते हैं तो पाठक एक और किस्त[१] की आशा रख सकते हैं। वैसे फिलहाल वे इस लेखमालाको पूर्ण हो गया ही समझें।

इन लेखोंमें स्पष्ट रूपसे और मैं तो कहूँगा कि निर्विवाद रूपसे यह दिखा दिया गया है कि अबसे २५ वर्ष या उससे भी पहलेके मुकाबले आज भारत कहीं ज्यादा गरीब है और यह गरीबी किन्हीं खास समुदायों तक सीमित नहीं है, बल्कि सार्वत्रिक है। प्रोफेसर वकीलने अपनी बातको सिद्ध करनेके लिए दो कसौटियोंका प्रयोग किया है। उन्होंने दिखाया है कि यद्यपि गत चालीस वर्षोंमें हमारी औसत आय १ से बढ़कर २.७४ (उन्होंने हर मामलेमें अधिकतम अंकको स्वीकार करके यह अनुमान लगाया है) हो गई है, किन्तु निर्वाह-व्यय १ से बढ़कर ३.७८ हो गया है। मतलब

 

  1. "गरीबीका इलाज" शीर्षकसे सी॰ एन॰ वकीलकी लेखमाला यंग इंडियाके २७ सितम्बर, ४, ११ और १८-१०-१९२८ के अंकोंमें प्रकाशित हुई थी।