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२७८. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
७ सितम्बर, १९२८

सुब्बैयाने अभी-अभी मुझसे कहा है कि तुम मेरी आत्मकथाके अध्यायोंका जो संक्षेप कर रहे हो वह न्यूयार्ककी मैकमिलन कम्पनीके साथ हुए मेरे करारकी शर्तोंके खिलाफ हो सकता है। मेरा खयाल है कि जबतक मैं अन्तिम अध्याय तैयार करके सारी सामग्रीकी एक प्रति मैकमिलन कम्पनीको नहीं सौंप देता तबतक ऐसा कोई संक्षेप करारकी शर्तों के खिलाफ नहीं होना चाहिए। तथापि तुम्हारे मार्गदर्शनके लिए मैं एहतियातन उस पत्रकी एक प्रति[१] साथमें भेज रहा हूँ जो मैंने रेवरेंड होम्सको लिखा है।

मैं तुम्हारी इस रायसे सहमत हूँ कि साइमन कमीशनसे किसी चीजकी आशा नहीं करनी चाहिए।

सरोजिनी शीघ्र ही अमेरिका रवाना होनेवाली है। वे आज रात यहाँ आ रही हैं। ग्रेगकी तीव्र इच्छा है कि तुम जब अमेरिका जाओ तो उनके घरके लोगोंसे मिलो। यदि मैं उनका पता मालूम कर सका तो वह तुम्हें मैं इस पत्रके साथ भेज दूंगा।

आत्मकथा [खण्ड १]के अध्यायोंका प्रकाशन पूरा होनेके बादसे मैं 'यंग इंडिया' के अंकोंकी[२] दो-दो प्रतियाँ तुम्हें भिजवा रहा हूँ।

मुश्किल यह है कि तुम जरूरतसे ज्यादा काम करनेका आग्रह रखते हो और फिर बीमार पड़ जाते हो। मैंने १९१४ में केपटाउनमें तुमसे कहा था कि तुम्हें एक अभिभावककी जरूरत है; आज भी मेरा वही विचार है।

महादेव वल्लभभाईके साथ शिमला गया है। वल्लभभाईको इस तरहके परिवर्तनकी जरूरत थी और फिर विट्ठलभाई भी कुछ दिन उन्हें अपने साथ रखना चाहते थे।

श्रीयुत सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूज
११२, गोवर स्ट्रीट
लन्दन, डब्ल्यू॰ – १

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १२७८०) की फोटो-नकलसे।

 

  1. देखिए पिछला शीर्षक।
  2. तात्पर्य १२ मई, १९२७के बादके अंकोंसे है। इस तारीखके अंकमें आत्मकथाके प्रथम खण्डका तीसरा भाग पूरा हो गया था और तीनों भाग उसी वर्ष पुस्तक-रूपमें प्रकाशित हो गये थे।