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२७९. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
७ सितम्बर, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

अखबारोंमें पढ़ा कि कलकत्ता में फिर बेरीबेरीका प्रकोप हुआ है। इस खबर से घबराकर आज सुबह मैंने आपको तार दिया कि आप और हेमप्रभा देवी कुछ दिनोंके लिए कलकत्तासे बाहर चले आयें। बेशक, आप यहाँ तो जब चाहें आ सकते हैं और यहाँ आपका समय भी नष्ट नहीं होगा। सच तो यह है कि कतैयेका समय कहीं भी नष्ट नहीं होता। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप मेरे सुझावपर गम्भीरता से विचार करें।

प्रदर्शनी के सम्बन्धमें मैं समस्त खादी-संगठनों से यही कहने जा रहा हूँ कि अब तक के निर्णय के अनुसार कांग्रेस-प्रदर्शनीमें खादीका प्रदर्शन नहीं किया जायेगा।

आपने पानीका जो हाथ पम्प यहाँ लगाया था, वह कष्ट दे रहा है। मुझे ऐसा लगता है कि जबतक पासमें कोई अच्छा कारीगर न हो तबतक इन मशीनोंको लगवाना ठीक नहीं है। अभी उस दिन अचानक ही पम्प खराब हो गया, जिससे हमें पानी नहीं मिला और हमने इस आकस्मिक परिस्थितिके लिए पहलेसे कोई व्यवस्था भी नहीं कर रखी थी। आज पानी भरनेका डोल टूट गया और फिर पानीका अभाव हो गया और एक बार जब लोगोंने ऐसा मान लिया कि अब पानी भरनेकी झंझट से छुटकारा मिल गया तो स्वभावतः फिरसे यह काम करनेको उनका मन नहीं होता। मैं जानता हूँ कि जहाँ मशीनोंसे काम लेनेका वातावरण होता है वहाँ ऐसी दिक्कतें पेश नहीं आतीं। मैं आपको यह सब इसलिए बता रहा हूँ कि आप इस सम्बन्धमें मुझे जो सुझाव देना चाहें, दे सकें। इस पम्पको प्राप्त करनेके बाद इसे सहज ही छोड़नेका मन नहीं हो रहा है।

आपने जो बड़ी योजना[१] बनाई है उसे तो अब तभी आजमाऊँगा जब हाथ-पम्पका प्रयोग मुझे पूरा निरापद लगने लगेगा।

श्रीयुत सतीशचन्द्र दासगुप्त
खादी प्रतिष्ठान
सोदपुर

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५१०) की फोटो-नकलसे।

 

  1. नल-कूप द्वारा साबरमती आश्रमके लिए पानीकी व्यवस्था करनेकी योजना।