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२९०. पत्र: चिन्तामणि ब॰ खाडिलकरको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
८ सितम्बर, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। आपका मामला तत्त्वतः सत्याग्रहका मामला है। आप एक ऐसे क्लबके सदस्य है, जिसके अन्य सदस्योंने अपनी प्रतिज्ञाको तोड़ा है। इसलिए यदि आपमें साहस है तो आप उनसे तनिक भी नाराज हुए बिना उनके विरुद्ध सत्याग्रह करें। लेकिन ऐसा करनेसे पहले आप उन्हें अच्छी तरह समझायें-बुझायें और इस तरह उनसे प्रतिज्ञाका पालन करवानेका हर सम्भव प्रयत्न करें। यदि वे आपकी बात नहीं मानते तो सावधानीके साथ इस पर विचार करें कि आप सत्याग्रहके किस रूपको अपना सकते हैं।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत चिन्तामणि बलवन्त खाडिलकर
फर्ग्युसन कॉलेज
होस्टेल कमरा नं॰ ३३२
डेकन जिमखाना, पूना सिटी

अंग्रेजी ( एस॰ एन॰ १३५१८) की फोटो-तकलसे।

 

२९१. बालक क्या समझें?

गुजरात विद्यापीठका एक विद्यार्थी लिखता है:[१]

इस पत्रमें जिन लेखोंसे उद्धरण दिये गये हैं, मैं उन लेखोंको नहीं पढ़ पाया हूँ। किसी लेखमें से कोई एकाध अंश छाँटकर, आगे-पीछेके सन्दर्भ पर विचार किये बिना, सामंजस्यपूर्ण अर्थ निकालना हमेशा सम्भव नहीं। फिर भी इस उद्धरणमें निहित भाव मेरे अनुभवसे निकला हुआ है; इसलिए मूल लेख पढ़े बिना उत्तर देनेमें मुझे कोई कठिनाई नहीं है। पाठक यहाँ बालक शब्दका अर्थ दो सालका बच्चा न समझें बल्कि इसका अर्थ, जिस उम्र में बालकको आम तौर पर स्कूल भेजना शुरू किया जाता है, उस उम्रका बालक किया जाना चाहिए।

 

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। पत्र-लेखकने लिखा था कि गांधीजी के लेखोंसे यह जाहिर होता है कि वे बच्चोंसे जो अपेक्षाएँ रखते हैं वे बहुत अधिक हैं।