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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कांग्रेसकी प्रतिज्ञामें इस शान्ति-मार्गका ही उल्लेख है। किन्तु बारडोलीकी विजयसे पहले ऐसा दिखाई दिया था कि लोगोंकी शान्तिमें श्रद्धा नहीं रही है। बारडोलीकी विजयके पश्चात् यह दिखाई दिया कि उनका शान्ति-मार्गमें विश्वास फिर जम गया है। यदि हमें स्वराज्य लेना है तो हमें इनमें से किसी एक मार्गपर अविराम चलना होगा। ये दोनों मार्ग परस्पर-विरोधी हैं, इसलिए इनसे जो स्वराज्य-रूपी फल मिलेगा वह भी एक दूसरेसे भिन्न होगा। नाम एक होने पर भी उसके गुणोंमें भिन्नता होगी। हम जैसा बीज बोयेंगे, हमें वैसा ही फल मिलेगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ९-९-१९२८

 

२९३. सूरत जिलेमें मद्य निषेध

श्रीमती मीठूबहन पेटिटके प्रयाससे सूरत जिलेमें एक मद्य-निषेध संस्थाकी स्थापना की गई है। उन्होंने इसका विवरण मुझे भेजा है। यह इस प्रकार है:[१]

सरदार वल्लभभाईको मीठूबहनसे बहुत बड़ी सहायता मिली है, उन्होंने यह बहुत बार कहा है। यह पारसी बहन, जिसने पहले कभी कोई कष्ट नहीं सहा था, किसानोंके घरोंमें किसानोंकी तरह रही है, उसने उनके सादा खान-पानमें सन्तोष माना है और अपना शरीर कोमल होने तथा अनेक सुखोंकी अभ्यस्त होने पर भी शरीरकी अपनी शक्ति कायम रखकर दिन-रात परिश्रम किया है। उसने अपनी वीरतासे बारडोलीके भाइयों और बहनोंको वीरताका पाठ पढ़ाया है। उसने अपने अनवरत श्रमसे युवकोंको भी मात कर दिया है। उसने खादीके पीछे पागल होकर घर-घर जाकर खादीकी फेरी की है और लोगोंमें उसके प्रति रुचि उत्पन्न की है। वह एक क्षण भी खाली नहीं बैठ सकती। इसलिए वल्लभभाईने उसका नाम चंचलबहन रख दिया है। इस बहनने देखा, सूरत जिलेमें शराब बहुत पी जाती है। उसने यह भी देखा कि शराबके ठेके ज्यादातर पारसी भाइयोंके हाथोंमें है। इस कारण उसने पूरे सूरत जिलेमें मद्य-निषेधका कार्य करनेका निश्चय किया और अब उसके उद्योगसे ऊपर बताई गई संस्था स्थापित हुई है। उसके जो अधिकारी चुने गये हैं उनके नामोंको देखते हुए मैं यह कह सकता हूँ कि मीठूबहनने उनसे पूरा-पूरा काम लेनेका निश्चय किया है। मुझे आशा है कि अधिकारी पूरी शक्तिसे काम करेंगे। मीठूबहन काम लिये बिना छोड़ेंगी नहीं। यदि इस संस्थाका काम सफल हो जाये तो वह बारडोलीके रचनात्मक कार्यका एक सुन्दर परिणाम माना जायेगा और उससे सूरत जिलेका लाखों रुपया बच जायेगा। इतना ही नहीं, बल्कि उसका प्रभाव देशव्यापी होगा। मद्यपानसे प्रतिवर्ष २० करोड़ रुपये नष्ट होते हैं, इतना ही नहीं, बल्कि लाखों लोग आचार-भष्ट होते हैं और सहस्रों परिवारोंका सर्वनाश होता

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें संस्थाकी स्थापनाकी सूचना और उसके सदस्योंकी सूची थी।