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राष्ट्रीय छात्रालयोंमें पंक्ति-भेद?

है। जिसे सचमुच खादीका चस्का लग गया है वह इस बातको सहज ही देख सकता है। मीठूबहनने भी यह बात देख ली है और उसे अपनी साहसिक वृत्तिसे इस भारी कामको हाथ में लेनेकी प्रेरणा मिली है। ईश्वर उसे स्वस्थ रखे और साहस दे।

[गुजराती से]

नवजीवन, ९-९-१९२८

 

२९४. राष्ट्रीय छात्रालयोंमें पंक्ति-भेद?

काकासाहब कालेलकरकी बढ़ती हुई डाकमें कई तरह के सवाल आते हैं। उसमें एक सवाल पंक्ति-भेदके बारेमें था। उन्होंने उसका जो जवाब दिया, उसकी नकल मेरे पास भेज दी है। राष्ट्रीय छात्रालयोंके मार्ग-दर्शनके विचारसे मैं उसे ज्यों-का-त्यों नीचे दे रहा हूँ:[१]

काकासाहब फूँक-फूँककर कदम रखना चाहते हैं, क्योंकि जहाँ तक हो सके वे माँ-बाप या विद्यार्थियोंका जी नहीं दुखाना चाहते। इसलिए कहते हैं: "छात्रालयमें रसोई ब्राह्मण रसोइयेके हाथसे ही होती है। शौचाचारके अनुसार एक खास तरीके से रसोई तैयार करनेका आग्रह इस तरह निभाया जाता है।" मेरी रायमें तो बहुत समय तक ब्राह्मण रसोइयेका आग्रह रखना नामुमकिन है। जिस अर्थमें यहाँ ब्राह्मण शब्द काममें लिया गया है वैसे ब्राह्मणोंसे ही शौचाचारका पालन हो सकता हो, ऐसी कोई बात नहीं है। यह भी नहीं है कि ऐसे ब्राह्मण शौचाचारका पालन करते ही हैं। मैंने तो गन्दगीसे भरपूर, तन्दुरुस्तीके नियमोंको तोड़नेवाले कितने ही ब्राह्मण रसोइये देखे हैं; दो आँखोंवाले किस इन्सानने नहीं देखे होंगे? शौचाचारमें निपुण, तन्दुरुस्तीके कायदे जानने और पालनेवाले अब्राह्मण रसोइये भी मैंने बहुत देखे हैं। इसलिए अगर ब्राह्मण शब्दके असली मतलबको ध्यानमें रखें तो जो शौचाचारका पालन करे वही ब्राह्मण माना जाये। ऐसा मानने पर सब राष्ट्रीय छात्रालय आसानी से काकासाहबका नियम पाल सकेंगे। जो जन्मसे ब्राह्मण है यदि उसीको ब्राह्मण माना जाये, तब तो शौचाचारको पालनेवाले ब्राह्मण रसोइये बहुत नहीं मिलेंगे; और यदि मिलेंगे भी तो वे इतना अधिक वेतन माँगेंगे और इतने सिर चढ़ेंगे कि उन्हें रखना और निभाना लगभग असम्भव हो जायेगा। विद्यापीठ सत्य और अहिंसाकी आराधना करता है। इसलिए हमारे छात्रालयोंकी जैसी हालत हो उसे वैसा ही जाहिर करना चाहिए; उसके लिए परस्पर या दूसरोंसे दोषोंको छिपाना अनुचित है। इसलिए काकासाहबने साफ कर दिया है कि विद्यापीठके छात्रालयमें पंक्ति-भेदके लिए जगह नहीं है। पंक्ति-भेदके गर्भमें ऊँच-नीचका भेद निहित है। वर्णभेदके साथ ऊँच-नीचका कोई सम्बन्ध नहीं है। उच्चताका दावा करनेवाला ब्राह्मण नीचे गिर

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। काकासाहबने अपने पत्र में लिखा था कि विद्यापीठ पंक्ति-भेदको अनुचित मानता है और इसलिए वहाँ भोजनालय में पंक्ति-भेद नहीं किया जाता।