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पत्र: हूगो त्रुशरको

 

सिन्धके सवालपर आपने अपना आग्रह छोड़ दिया, यह बात बेशक मुझे बहुत अच्छी लगी। मगर मैं यह जाननेको उत्सुक था कि आपने किस कारणसे ऐसा किया, क्योंकि मुझे मालूम था कि इस सम्बन्धमें आपके विचार बहुत दृढ़ हैं।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५१९) की फोटो-नकलसे।

 

२९८. पत्र: जी॰ रामचन्द्रन्को

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
९ सितम्बर, १९२८

प्रिय रामचन्द्रन्,

तुम्हारा पत्र मिला। मेरा निर्णय यह है: तुम अपने मनसे ही ऐसा मत मान बैठो कि तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा हो गया। इस विषयमें राजाजीको निर्णय करने दो। अगर वे कहते हैं कि तुम केरलमें काम शुरू कर सकते हो तो बखूबी वैसा करो; लेकिन यदि नहीं कहते तो जबतक वे तुम्हारी योग्यताके कायल नहीं हो जाते तब-तक प्रतीक्षा करो। मुझे पूरा विश्वास है कि तुम्हारे कामके हकमें यह सबसे अच्छा रहेगा। यदि तुम्हारा अपना निष्कर्ष सही है तो फिर तुममें इतना आत्मविश्वास तो होना ही चाहिए कि तुम राजाजीको कायल कर सको। यदि ठीक ढंगके लोग केरलमें खादी-कार्यमें अपनी शक्ति लगायेंगे तो वहाँ इस चीजके सफल होने में मुझे तो कोई सन्देह नहीं है। बेशक, तुम्हारे गांधी सेवा-संघका सदस्य बन जानेका विचार मुझे पसन्द है।

महादेव शिमलामें है। बारडोली सत्याग्रहका इतिहास लिखनेके लिए वल्लभभाई उसे वहाँ ले गये हैं। रसिक और नवीन गांधी जामियाके काममें देवदासकी मदद करने दिल्ली गये हैं।

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३५२०) की माइक्रोफिल्मसे।

 

२९९. पत्र: हूगो बुशरको[१]

९ सितम्बर, १९२८

पत्र-पत्रिकाओंके अनुरोधपर उनकी माँगके अनुसार लेख लिखनेकी क्षमता मुझमें नहीं है, और न उस दिशामें मेरी कोई रुचि ही है।

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४३८२) की माइक्रोफिल्मसे।

 

  1. जिनेवासे आये एक पत्रके उत्तर में पत्र-लेखकने लिखा था कि हमारा पत्र यूरोपका एक महत्त्वपूर्ण और प्रमुख पत्र है और आप इसमें प्रकाशनार्थ समय-समयपर अपने लेख भेजते रहें, जिनके लिए आपको बहुत अच्छा पारिश्रमिक दिया जायेगा।