पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३०४

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३००. पत्र: कृष्णदासको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१० सितम्बर, १९२८

प्रिय कृष्णदास,

रामविनोदके बारेमें तुम्हारा पत्र[१] पढ़कर मेरे मनको बड़ी राहत मिली। उसकी प्रतिलिपियाँ मैं जमनालालजी तथा अन्य लोगोंको भेज रहा हूँ। रामविनोद द्वारा कुछ खरीदारी करनेकी खबर मुझे मिली थी। उसके बारेमें तो तुमने कुछ लिखा ही नहीं। क्या उन आरोपोंमें कोई सचाई है?

'सेवन मन्थ्स' का[२] बंगला संस्करण मिला। क्या इसकी बिक्री अच्छी हो रही है? अंग्रेजी संस्करण में सांकेतिकाकी कमी बहुत खटकती है। छपाईकी भूलें भी हैं। तुम्हारा स्वास्थ्य कैसा है और गुरुजी कैसे हैं?

आश्रममें बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन हो रहे हैं। शायद गिरिराज उनके बारेमें तुम्हें लिखता रहता हो।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३६५४) की माइक्रोफिल्मसे।

 

३०१. पत्र : बालकृष्ण भावेको

आश्रम, साबरमती
१० सितम्बर, १९२८

चि॰ बालकृष्ण,

तुम्हारा पत्र मिला। देखने में ही सिपाही जैसा नहीं बल्कि जो वास्तवमें सिपाही है उसे ज्ञानी भी होना चाहिए, इस बातको मैंने कभी नहीं माना। किन्तु मैं यह अवश्य मानता हूँ कि जो सिपाही नहीं है अथवा जो सिपाही नहीं हो सकता वह ज्ञानी तो कभी हो ही नहीं सकता। और यही बात ब्रह्मचारीके सम्बन्धमें भी कही जा सकती है। हमारा यह भी अनुभव नहीं है कि किसी एक इन्द्रियका दमन करनेवाला ज्ञानी होता ही है। किन्तु यह तो हम सभी मानते हैं कि ज्ञानीके लिए व्यभिचार करना सम्भव ही नहीं है। जिन लड़कियोंके कन्धेपर हाथ रखकर मैं चलता हूँ, उनके प्रति निर्विकार रहूँ इसमें तो मुझे ज्ञानकी कोई आवश्यकता नहीं जान पड़ती। कोई पिता अपनी अनेक सयानी लड़कियोंके प्रति निर्विकार होते हुए भी किसी और

 

  1. ३० अगस्त, १९२८ को लिखे इस पत्र में कृष्णदासने रामविनोदको बरारमें खादी-कार्येके निमित्त निश्चित कोषके दुरुपयोगके आरोपसे बरी बताया था।
  2. कृष्णदास-कृत सेवन मन्थ्स विद महात्मा गांधी।