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३०२. भाषण: टॉल्स्टॉय शताब्दी समारोहके उपलक्ष्य में[१]

१० सितम्बर, १९२८

मेरी वर्तमान मानसिक दशा कोई पर्व-पुण्यतिथि या उत्सव मनाने योग्य नहीं है। कुछ दिनों पहले 'नवजीवन' या 'यंग इंडिया' के किसी पाठकने मुझसे पूछा था: "आप श्राद्धके विषयमें लिखते हुए कह चुके हैं[२] कि पुरखोंका सच्चा श्राद्ध उनकी पुण्यतिथिको उनके गुणोंका स्मरण करने और उन्हें अपने जीवनमें उतारनेसे हो सकता है। इसीसे मैं पूछता हूँ कि आप खुद अपने पुरखोंकी श्राद्धतिथि कैसे मनाते हैं?" जब मैं युवा था तब पुरखोंकी श्राद्धतिथि मनाया करता था। परन्तु आपको यह बताने में मुझे संकोच नहीं है कि अब मुझे अपने पुरखोंकी श्राद्धतिथि याद तक नहीं है। मुझे याद नहीं आता कि बरसोंसे मैंने किसीकी पुण्यतिथि मनाई हो। मेरी स्थिति इतनी कठिन या कहिए कि सुन्दर है, अथवा जैसा कि कई-एक मित्र मानते हैं, इतने प्रगाढ़ मोहकी है। मैं मानता हूँ कि जिस कार्यको हाथमें लिया हो उसीकी माला जपने चौबीसों घंटे उसका मनन करने और जहाँतक बन पड़े उसे सुव्यव स्थित रूपसे करने में ही सब-कुछ आ जाता है। उसीमें पुरखोंकी श्राद्धतिथि मनाना भी आ जाता है, टॉल्स्टॉय-जैसोंके उत्सव भी आ जाते हैं। यदि डॉक्टर हरिप्रसादने मुझे जालमें न फँसाया होता तो यह सर्वथा सम्भव था कि १० तारीखका यह उत्सव मैंने किसी भी तरह आश्रममें न मनाया होता। सम्भव है कि मैं यह भूल ही गया होता। तीन महीने पहले एल्मर मॉड एवं टॉल्स्टॉयका साहित्य एकत्रित करनेवाले अन्य सज्जनोंके पत्र आये थे कि इस शताब्दीके अवसर पर मैं भी कुछ लिख भेजूँ, और इस दिनकी याद हिन्दुस्तानको दिलाऊँ। एल्मर मॉडके पत्रका सारांश या पूरा पत्र आपने 'यंग इंडिया' में[३] देखा होगा। उसके बाद मैं यह बात बिलकुल भूल गया। यह प्रसंग मेरे लिए एक शुभ अवसर है। फिर भी यदि मैं भूल गया होता तो पश्चात्ताप न करता। परन्तु युवक संघके सदस्योंने यह पुण्यतिथि यहाँ मनानेका जो अवसर दिया वह मेरे लिए प्रसन्नताकी बात है।

अगर मैं अपने बारेमें यह कह सकता कि दत्तात्रेयकी तरह मैंने जगत्में बहुत-से गुरु किये हैं, तो मुझे अच्छा लगता, किन्तु मेरी ऐसी स्थिति नहीं है। मैंने तो इससे उलटा ही कहा है कि मैं धर्मगुरु खोजनेका अभीतक प्रयत्न कर रहा हूँ। मैं यह मानता हूँ कि धर्मगुरु प्राप्त करनेके लिए स्वयं व्यक्तिमें बहुत बड़ी योग्यता होनी चाहिए और मेरी यह मान्यता दिनों-दिन दृढ़ होती जाती है। जो यह योग्यता

 

  1. यह भाषण अहमदाबाद युवक संघके तत्वावधान में आश्रम में आयोजित सभामें दिया गया था।
  2. देखिए खण्ड ३४, पृष्ठ ४६७।
  3. देखिए खण्ड ३६, पृष्ठ ७९।


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