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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्राप्त कर लेता है, गुरु स्वयं उसके समीप चलकर आ जाते हैं। मुझमें यह योग्यता नहीं है। गोखलेको मैंने अपना राजनीतिक गुरु कहा है। उन्होंने मुझे उस क्षेत्रमें पूरा सन्तोष दिया था। उनके कथन या उनकी आज्ञाके विषयमें मेरे मनमें कभी तर्क-वितर्क नहीं उठते थे। किन्तु किसी धर्मगुरुके विषयमें मेरी स्थिति ऐसी नहीं है।

फिर भी मैं इतना कह सकता हूँ कि तीन पुरुषोंने मेरे जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डाला है। उनमें पहला स्थान मैं राजचन्द्र कविको देता हूँ, दूसरा टॉल्स्टॉयको और तीसरा रस्किनको। किन्तु यदि टॉल्स्टॉय और रस्किनके बीच चुनावकी बात हो और दोनोंके जीवनके विषयमें मैं अधिक बातें जान लूँ, तो नहीं जानता कि उस हालत में प्रथम स्थान किसे दूँगा। परन्तु फिलहाल तो मैं दूसरा स्थान टॉल्स्टॉयको देता हूँ। टॉल्स्टॉयके जीवनके विषय में बहुतोंने जितना पढ़ा होगा उतना मैंने नहीं पढ़ा। ऐसा भी कहा जा सकता है कि उनके लिखे हुए बहुत कम ग्रन्थ मैंने पढ़े हैं। उनकी जिस किताबका मुझपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा उसका नाम है 'किंगडम ऑफ हैवन इज विदिन यू"। इसका अर्थ है कि ईश्वरका राज्य तुम्हारे हृदयमें है, यदि हम उसे बाहर खोजने जायेंगे तो वह कहीं नहीं मिलेगा। इसे मैंने चालीस वर्ष पहले पढ़ा था। उस समय मेरे मनमें कई-एक बातोंको लेकर शंका उठती रहती थी; कई मर्तबा मुझे नास्तिकतापूर्ण विचार भी सुझते रहते थे। विलायत जानेके समय तो मैं हिंसक था, हिंसा पर मेरी श्रद्धा थी और अहिंसा पर अश्रद्धा। यह पुस्तक पढ़नेके बाद मेरी यह अश्रद्धा चली गई। फिर मैंने उनके अन्य ग्रन्थ पढ़े। उनमें से प्रत्येकका क्या प्रभाव पड़ा सो तो मैं नहीं कह सकता, परन्तु उनके समग्र जीवनका क्या प्रभाव पड़ा, यह अवश्य कह सकता हूँ।

उनके जीवनमें मेरे लेखे दो बातें महत्त्वपूर्ण थीं। वे जैसा कहते थे वैसा ही करते थे। उनकी सादगी अद्भुत थी, बाह्य सादगी तो उनमें थी ही। वे अमीर वर्गके व्यक्ति थे, इस जगत्के सभी भोग उन्होंने भोगे थे। धन-दौलतके विषयमें मनुष्य जितनेकी इच्छा रख सकता है, वह सब उन्हें मिला था। फिर भी उन्होंने भरी जवानीमें अपना ध्येय बदल डाला। दुनियाके विविध रंग देखने और उनके स्वाद चखने पर भी, जब उन्हें प्रतीत हुआ कि इसमें कुछ नहीं है तो उनसे उन्होंने मुँह मोड़ लिया, और अन्त तक अपने विचारों पर डटे रहे। इसीसे मैंने एक जगह लिखा है कि टॉल्स्टॉय इस युगकी सत्यकी मूर्ति थे। उन्होंने सत्यको जैसा माना तद्नुसार चलनेका उत्कट प्रयत्न किया; सत्यको छिपाने या कमजोर करनेका प्रयत्न नहीं किया। लोगोंको दुःख होगा या अच्छा लगगा, शक्तिशाली सम्राट्को पसन्द आयेगा या नहीं, इसका विचार किये बिना ही उन्हें जो वस्तु जैसी दिखाई दी उन्होंने कहा वैसा ही। टॉल्स्टॉय अपने युगके अहिंसाके बड़े भारी समर्थक थे। जहाँतक मैं जानता हूँ, अहिंसा के विषय में पश्चिमके लिए टॉल्स्टॉयने जितना लिखा है उतना मार्मिक साहित्य दूसरे किसीने नहीं लिखा। उससे भी आगे जाकर कहता हूँ कि अहिंसाका जितना सूक्ष्म दर्शन और उसका पालन करनेका जितना प्रयत्न टॉल्स्टॉयने किया था उतना प्रयत्न करनेवाला आज हिन्दुस्तानमें कोई नहीं है और न मैं ऐसे किसी आदमीको जानता हूँ।