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भाषण: टॉल्स्टॉय शताब्दी समारोहके उपलक्ष्यमें

 

ऐसा कहने में मेरा यह अभिप्राय नहीं है कि आप अपने दोषोंको छिपाएँ या पहाड़-से दोषोंको छोटा-सा मानें। ऐसा तो हमें दूसरोंके विषयमें करना चाहिए। हमें दूसरोंके हिमालय-से दोषोंको राईके समान छोटा और अपने राई-से दोषोंको हिमालयके समान बड़ा समझना चाहिए। अपने भीतर यदि तनिक-से भी दोषका अनुभव हो अथवा हमसे जाने-अनजाने असत्याचरणका दोष हो गया हो तो डूब मरनेकी इच्छा होनी चाहिए। दिलमें पश्चात्तापकी आग सुलग उठनी चाहिए। सर्प या बिच्छूका डंक तो कुछ नहीं है, उनका जहर उतारनेवाले तो बहुत मिल सकते हैं, परन्तु असत्य और हिंसाके दंशसे बचानेवाला कौन है? ईश्वर ही हमें उससे मुक्ति दे सकता है, और हममें अगर पुरुषार्थ हो तभी वह परिस्थिति आ सकती है। इसलिए अपने दोषोंके बारेमें हम सचेत रहें। उन्हें जितना बढ़ा-चढ़ाकर देख सकें हम उन्हें उतना बढ़ा-चढ़ाकर देखें। और अगर जगत् हमें दोषी ठहराये तो हम ऐसा न मानें कि जगत् कितना अनुदार है कि एक छोटे-से दोषको बड़ा बतलाता है। टॉल्स्टॉयको यदि कोई उनका दोष बतलाता था तो वे उसे बड़े भयंकर रूपमें देखते थे। यों उनका दोष बतानेका अवसर दूसरेको शायद ही कभी मिला हो; क्योंकि वे स्वयं बारीकी से आत्मनिरीक्षण किया करते थे। दूसरेके बतानेके पहले ही वे अपने दोष देख लेते थे, और उसके लिए अपनी कल्पना द्वारा सुझाया हुआ प्रायश्चित्त भी वे कर डालते थे। यह साधुताकी निशानी है; इसीसे मैं मानता हूँ कि उन्हें वह छड़ी मिली थी।

एक दूसरी अद्भुत वस्तुपर लिखकर और उसे अपने जीवन में उतारकर टॉल्स्टॉयने उसकी ओर हमारा ध्यान दिलाया है। वह है 'ब्रेड लेबर'। यह उनकी अपनी खोज नहीं थी। किसी दूसरे लेखकने यह वस्तु रूसके सर्वसंग्रह (रशियन मिसलेनी) में लिखी थी। इस लेखकको टॉल्स्टॉयने जगत्के सामने ला रखा और उसकी बातको भी प्रकाशमें लाये। जगत्में जो असमानता दिखाई पड़ती है, एक तरफ दौलत और दूसरी तरफ कंगाली नजर आती है, उसका कारण यह है कि हम अपने जीवनका कानून भूल गये हैं। यह कानून 'ब्रेड लेबर' है। 'गीता' के तीसरे अध्यायके आधारपर मैं उसे यज्ञ कहता हूँ। 'गीता' ने कहा है कि जो बिना यज्ञ किये खाता है वह चोर है, पापी है। वही चीज टॉल्स्टॉयने बतलाई है। ब्रेड लेबरका उलटा-सीधा भावार्थ करके हमें उसे उड़ा नहीं देना चाहिए। उसका सीधा अर्थ यह है कि जो शारीरिक श्रम नहीं करता उसे खानेका अधिकार नहीं है। यदि हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने भोजनके लिए आवश्यक मेहनत कर डाले तो जो गरीबी जगत्में दीखती है वह दूर हो जाये। एक आलसी दोको भूखों मारता है, क्योंकि उसका काम दूसरेको करना पड़ता है। टॉल्स्टॉयने कहा कि लोग परोपकार करने निकलते हैं, उसके लिए पैसे खर्च करते हैं और बदलेमें खिताब आदि लेते हैं; यदि वे यह सब न करके केवल इतना ही करें कि दूसरोंके कन्धोंसे नीचे उतर जायें तो यही काफी है। यह सच बात है। यह नम्रतापूर्ण वचन है। करने जायें परोपकार और अपना ऐशो-आराम लेश भी न छोड़ें तो यह वैसा ही हुआ जैसा कि अखा भक्तने कहा है: 'निहाईकी चोरी, सुईका दान'। क्या ऐसे में स्वर्गसे विमान आ सकता है?