पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७९
भाषण: टॉल्स्टॉय शताब्दी समारोहके उपलक्ष्यमें

पादित विचार मनुष्यको मटियामेट कर देनेवाले होते हैं, वे स्वेच्छाचारकी तरफ ले जानेवाले होते हैं। आप इस बातको बिलकुल सही मानें। आप यह अभिमान कदापि न करें कि आपने जो सोचा है, या जो किताबें अपनी अधकचरी अवस्था में पढ़ी हैं और उनसे जो समझा वही सच्चा है और जो प्राचीन है वह बर्बरतासे भरा है तथा जो नई-नई खोजें हुई हैं वे सब सच्ची हैं। यदि आपको इसका अहंकार हो तो मैं यह कल्पना ही नहीं कर सकता कि आप इस संघकी शोभा बढ़ा सकेंगे। सरला देवी से आपने नम्रता, सभ्यता, मर्यादा, पवित्रता सीखी होगी। अगर मेरी यह आशा आपने अभीतक सच्ची न कर दिखलाई हो तो भविष्यमें कर दिखलायें। आपने कुछ एक अच्छे काम किये हैं। उनकी प्रशंसा हो तो आप उससे फूल न उठें। प्रशंसासे दूर भागते रहें। ऐसा न मानें कि 'हमने बहुत कुछ कर डाला है।' बारडोलीके लिए यदि आपने पैसे इकट्ठे किये, पसीना बहाया, दो-चार व्यक्ति जेल गये तो, मैं एक अनुभवीकी हैसियतसे पूछता हूँ, उसमें आपने ऐसा कौन-सा बड़ा काम कर दिखाया? दूसरे भले ही कहें कि आपने कुछ किया है; किन्तु आप इतने में सन्तोष न मानें। आपको अपना आंतरिक जीवन सुधारना है; अन्तरात्मासे सच्चा प्रमाणपत्र प्राप्त करना है। वास्तवमें हमारी आत्मा भी सोई हुई होती है। तिलक महाराज कह गये हैं कि हमारे यहाँ 'कान्शन्स' का पर्यायवाची शब्द नहीं है। हम यह नहीं मानते हैं कि प्रत्येक व्यक्तिमें 'कान्शन्स' होता है किन्तु पश्चिममें ऐसा मानते हैं। व्यभिचारी और लम्पटकी 'कान्शन्स' क्या हो सकती है? इसीलिए तिलक महाराजने 'कान्शन्स' को जड़से ही उड़ा दिया। हमारे ऋषि-मुनियोंने कहा है कि अन्तर्नाद सुननेके लिए अन्तःकर्ण भी चाहिए, अन्तश्चक्षु चाहिए और उन्हें प्राप्त करनेके लिए संयमकी आवश्यकता है। इसीलिए 'पातंजल योगदर्शन' में योगाभ्यास करनेवालोंके लिए, आत्मदर्शनकी इच्छा रखनेवालोंके लिए पहला पाठ यम-नियमोंका पालन करना बताया है। सिवा संयमके मेरे, आपके या अन्य किसीके पास दूसरा कोई मार्ग ही नहीं है। टॉल्स्टॉयने अपने लम्बे जीवनमें संयमका पालन करके यही बताया। मैं चाहता हूँ, प्रभुसे प्रार्थना करता हूँ कि यह चीज हम आँखोंके आगे रखें, उसे दीयेकी तरह स्पष्ट देख सकें और आज हम यहाँ एकत्र हुए हैं तो यह निश्चय करके उठें कि टॉल्स्टॉयके जीवनसे हमें संयमकी साधना करनेका पाठ सीखना है।

हम निश्चय करें कि हम सत्यकी आराधना नहीं छोड़ेंगे। इस दुनियामें सत्यके पालनका एकमात्र मार्ग सच्ची अहिंसा ही है। अहिंसा प्रेमका सागर है। उसकी थाह जगत्में कोई ले ही नहीं सका। यदि इस प्रेमसागरमें हम सराबोर हो जायें तो सारी दुनियाको अपने प्रेममें आत्मसात् कर लेनेकी उदारता हममें आ सकती है। यह बात कठिन अवश्य है किन्तु साध्य है। इसीसे हमने प्रारम्भिक प्रार्थनामें सुना कि शंकर हो या विष्णु, ब्रह्मा हो या इन्द्र, बुद्ध हो या सिद्ध, मेरा सिर तो उसीके आगे झुकेगा जो रागद्वेष-रहित हो, जिसने कामको जीता हो, जो अहिंसा प्रेम की प्रतिमा हो। लूले-लँगड़े प्राणियोंको न मारनेमें ही अहिंसा नहीं है। उसमें धर्म तो हो सकता है, परन्तु प्रेम तो उससे भी अनन्त गुना आगे जाता है। जिसको उसके दर्शन नहीं हुए