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युद्धके प्रति मेरा दृष्टकोण

 

लेकिन इस गुत्थीका पूरा समाधान अब भी नहीं हो पाया है। यदि इस सरकारके बजाय कोई राष्ट्रीय सरकार हो तो मैं किसी युद्धमें प्रत्यक्ष रूपसे तो भाग नहीं लूँगा, किन्तु ऐसे प्रसंगोंकी कल्पना कर सकता हूँ जब सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त करनेकी इच्छा रखनेवाले लोगोंको सैनिक प्रशिक्षण देनेके पक्षमें मत देना मेरा कर्तव्य होगा। क्योंकि मैं जानता हूँ कि इस राष्ट्रके सभी सदस्य अहिंसामें उस सीमातक विश्वास नहीं रखते जिस सीमातक मैं रखता हूँ। किसी व्यक्ति या समाजको जबरदस्ती अहिंसक नहीं बनाया जा सकता।

अहिंसा बड़े रहस्यमय ढंग से काम करती है। मनुष्यके अहिंसात्मक दिखनेवाले कार्योंका विश्लेषण करनेपर वास्तव में उन्हें अहिंसात्मक सिद्ध कर पाना अक्सर कठिन पाया जाता है, इसी प्रकार अक्सर ऐसा होता है कि जब उसका आचरण अहिंसाके विशुद्धतम अर्थोंमें सर्वथा अहिंसात्मक होता है और बादमें ऐसा ही सिद्ध भी होता है तब ऊपरसे देखने में उसके कार्य हिंसात्मक प्रतीत होते हैं। इसलिए मैं जो कुछ कह सकता हूँ वह यही कि उपर्युक्त प्रसंगोंमें मेरे आचरणके पीछे अहिंसाकी ही प्रेरणा थी। क्षुद्र राष्ट्रीय अथवा अन्य हितोंको साधनेका कोई प्रश्न ही नहीं था। किन्हीं दूसरे हितोंकी बलि देकर राष्ट्रीय या किसी अन्य हितको साधनेमें मैं विश्वास नहीं रखता।

अपनी दलीलको मैं और नहीं बढ़ाऊँगा। भाषाके माध्यमसे कोई किसी भी हालत में अपने विचारोंको पूरी तरह अभिव्यक्त नहीं कर सकता। मेरे लिए अहिंसा एक दार्शनिक सिद्धान्त-मात्र नहीं है। वह मेरे जीवनकी नियामक शक्ति, उसकी साँस है। मुझे मालूम है कि अक्सर मुझसे चूक होती है — कभी-कभी जानते-बूझते, लेकिन प्रायः अनजाने ही। यह बुद्धिकी नहीं, हृदयकी चीज है। सच्चा मार्गदर्शन ईश्वरसे निरन्तर प्रार्थना करते रहने से, अतीव विनम्रता तथा आत्मत्यागसे तथा सदैव आत्मोत्सर्गके लिए तत्पर रहने से प्राप्त होता है। इसके आचरणके लिए प्रबल साहस और निर्भीकताकी आवश्यकता होती है।

लेकिन मेरे अन्तरमें जो दीप जल रहा है वह स्थिर है, स्पष्ट है। हमारे लिए सत्य और अहिंसाके अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं है, मैं जानता हूँ कि युद्ध गलत है, एक घोर बुराई है। मैं यह भी जानता हूँ कि इसे समाप्त होना चाहिए। मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि खूंरेजी और फरेबसे जीती हुई आजादी, आजादी नहीं है। मेरे किसी कार्यके कारण लोग ऐसा मानें कि अहिंसा धर्मकी यह सीमा है और इस तरह अहिंसा-धर्मको बट्टा लगे अथवा वे मेरे बारेमें ऐसी धारणा बनायें कि मैं अमुक रूपमें हिंसा या असत्यके पक्षमें हूँ, इसके बजाय यह ज्यादा अच्छा होगा कि जो कार्य करनेका आरोप मुझ पर लगाया गया है, उनमें से किसीका भी औचित्य सिद्ध न किया जा सके। हमारे जीवनका धर्म हिंसा नहीं है, असत्य नहीं है; उसका धर्म है अहिंसा और सत्य।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १३-९-१९२८