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३०६. दक्षिण आफ्रिकामें रियायत

दक्षिण आफ्रिकी भारतीय कांग्रेसने मुझे निम्नलिखित तार भेजा है:

रियायतका लाभ उठानेकी इच्छा रखनेवाले जो लोग आखिरी जहाजसे भारतसे प्रस्थान नहीं कर पाये वे कमासिया (एशियाइयोंके मामलोंके कमिश्नरका तारका पता), प्रिटोरियाको रियायतके लिए अर्जी देनेका अपना इरादा तीस सितम्बरसे पहले तार द्वारा सूचित करें और साथ ही तारमें अपने अधिवास पंजीयनपत्र या शिनाख्त प्रमाणपत्रका क्रमांक भी बतायें। इस सूचनाको कृपया भारत-भरके अखबारोंमें खूब प्रचारित करें।

यह तार मिलते ही इसे अखबारोंको भेज दिया गया था। इन स्तम्भोंमें प्रकाशित योजनाके[१] अन्तर्गत जो लोग आते हों, केवल वही उपर्युक्त विवरण भेजें। शेष लोगोंसे मेरा यह आग्रहपूर्ण निवेदन है कि वे अपनी पसीनेकी कमाईको तार भेजनेमें व्यर्थ बरबाद न करें।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १३-९-१९२८

 

३०७. टिप्पणियाँ
विदेशोंमें प्रचार और सरोजिनीदेवी

विदेशोंमें प्रचारका अर्थ आम तौर पर वहाँ कोई एजेंसी स्थापित करना या यहाँ-वहाँ दौरा करनेवाले शिष्टमण्डलोंको बाहर भेजना लगाया जाता है। इस सामान्य अर्थमें मैं विदेशोंमें प्रचार कार्यमें विश्वास नहीं रखता। लेकिन पश्चिमी संसारके अपने दौरेमें सरोजिनीदेवी विदेशोंमें जो प्रचार करेंगी वह किसी स्थापित एजेंसी द्वारा किये जानेवाले प्रचारसे कहीं अधिक प्रभावकारी होगा, क्योंकि उदासीन लोगोंको तो ऐसी किसी एजेंसीके अस्तित्वका भान भी नहीं होगा और फिर जिन लोगोंके मतका हमारे लिए कोई महत्त्व है वे उसकी उपेक्षा कर देंगे। भारत-कोकिलाके साथ ऐसी बात नहीं हो सकती। पश्चिमी दुनिया उन्हें जानती है। वे जहाँ-कहीं जायेंगी, लोग उनकी बात अवश्य सुनेंगे। उनमें महान् वाग्मिता-शक्ति है और उससे भी महान् कवित्व-शक्ति है, और इन दोनों गुणोंके कारण सोनेमें सुहागेका काम करती है उनकी सूक्ष्म और संवेदनशील नयज्ञता। वे जानती हैं कि कौन-सी बात कहनी चाहिए और कब कहनी चाहिए और वे सत्यको किसीकी भावनाको चोट पहुँचाये बिना कहनेकी कलामें

 

  1. देखिए परिशिष्ट २।