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टिप्पणियाँ

निपुण हैं। पश्चिममें वे जो कुछ करनेका उद्देश्य लेकर जा रही हैं, उससे हम हर तरहसे काफी कुछकी अपेक्षा रख सकते हैं। वे स्वभावसे ही संस्कारवान् हैं, सो वे अपने मन में यह निश्चय करके वहाँ गई हैं कि कुमारी मेयो द्वारा लगाये गये उद्धतापूर्ण आरोपोंका[१] वे प्रत्यक्ष खण्डन नहीं करेंगी। उनका वहाँ उनके बीचमें होना, भारत क्या है तथा वह उनके लिए क्या अर्थ रखता है, इसकी विवृति ही उस तमाम असत्यका पर्याप्त प्रतिकार होगा जो केवल भारत और भारतीयताको नीचा दिखानेके उद्देश्य से प्रेरित एजेंसियोंने ऐसे असत्यको सुननेको सदा तत्पर रहनेवाली अमेरिकी जनताके कानों में उड़ेला है।[२]

राष्ट्रीय स्त्री-सभा और खादी[३]

यह सभा कई वर्षोंसे खादीके कलात्मक नमूने पेश करके बम्बई तथा अन्य स्थानोंके फैशनपसन्द नागरिकोंके बीच खादी-प्रचारका महत्त्वपूर्ण काम करती आ रही है। सभा इस कामके द्वारा बम्बई नगरकी २५०से अधिक जरूरतमन्द लड़कियोंकी जीविकाका साधन सुलभ कर रही है। इसके पाँच केन्द्र हैं, जिनके माध्यमसे इन बहनोंको काम दिया जाता है। स्वभावतः इन लड़कियोंको प्रति-मास नियमित रूपसे वेतन देना पड़ता है। अखिल भारतीय चरखा संघका नकद भुगतानपर बड़ा आग्रह है, इसलिए सभा जो खादी खरीदती है उसकी कीमत उसे तत्काल नकद चुकानी पड़ती है। सभाने अनुभवसे यह देखा है कि यदि उसे अपने यहाँ काम करनेवालों का पारिश्रमिक और खरीदी गई खादीकी कीमत नकद चुकाती है तो अपने मालकी भी नकद बिक्रीपर आग्रह रखना चाहिए। इसके अलावा इस कामकी व्यवस्था करनेवाली सभी बहनें त्यागकी भावनासे काम करनेवाली स्वयंसेविकाएँ हैं। इसलिए उनका यह अपेक्षा करना सर्वथा उचित है कि उनके श्रमसे तैयार की गई चीजोंको खरीदनेवाले लोग जो कुछ भी खरीदना चाहें, नकद दाम देकर खरीदें। श्रीमती पेरिनबाई कैप्टनने सभाकी ओरसे एक परिपत्र जारी किया है, जिसमें उन्होंने सभाका माल खरीदनेवाले लोगोंसे नकद व्यवहार करनेका अनुरोध किया है। सभा उपकारकी भावनासे जो उपयोगी सेवा कर रही है, उसके लिए वह निस्सन्देह प्रोत्साहनकी पात्र है। और सभाको जिन प्रोत्साहनोंकी अपेक्षा करनेका अधिकार है उनमें नकद खरीदकी अपेक्षा करना तो सबसे छोटी अपेक्षा करना ही है। सभा द्वारा तैयार किया गया माल खरीदनेवाले न केवल निर्धनतम ग्रामीण लोगोंकी सहायता करते हैं, बल्कि नगरोंमें रहनेवाली जरूरतमन्द बहनोंकी जरूरतें भी पूरी करते हैं।

['अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १३-९-१९२८

 

  1. तात्पर्य मदर इंडियासे है; देखिए खण्ड ३४, पृष्ठ ५८४-९४।
  2. इसके बाद "बारडोलीका प्रथम आनुषंगिक परिणाम" शीर्षकसे एक टिप्पणी आती है। किन्तु उसे यहाँ नहीं दिया जा रहा है, क्योंकि वह ९-९-१९२८ के गुजराती नवजीवन में पहले ही छप चुका था। देखिए पृष्ठ २६४-६५।
  3. इसी विषयपर १६-९-१९२८ के नवजीवन में गुजराती में भी एक लेख छपा था।