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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

[संलग्न]
२२-६-१९२८ के परिपत्रमें जोड़े गये शब्द

सं॰ २८ में 'की गई प्रगति' के बाद, 'कताई चरखे पर या तकली पर की जाती है और काते गये सूतका क्या किया जाता है, इसकी जानकारी भी'।

एक ३२वीं मद भी रखिए, जो इस प्रकार हो:

कतैयों, बुनकरों और धुनियोंकी सामान्य दशा बतायें जिसमें यह दिखायें कि वे प्रतिवर्ष कितने दिन और प्रतिदिन कितने घंटेके हिसाबसे ये काम करते हैं; उनका दूसरा धन्धा, यदि ऐसा कोई धन्धा उनके पास हो तो, क्या है और जब वे कात-बुन या धुन नहीं रहे होते उस धन्धेसे औसतन उन्हें कितनी आय होती है।

अंग्रेजी ( एस॰ एन॰ १३६८६) की माइक्रोफिल्म से।

 

३१२. पत्र: किर्बो पेजको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
१४ सितम्बर, १९२८

प्रिय मित्र,

रेवरेंड बी॰ द लिग्टके खुले पत्रके अनुवाद के साथ आपका पत्र मिला। रेवरेंड लिग्टने खुद उस पत्रकी एक प्रति आपके पत्रसे दो सप्ताह पहले भेज दी थी। वे भी चाहते थे कि मैं उसका उत्तर उनकी पत्रिकाके लिए भेजूँ। लेकिन मुझे लगा कि यदि मैं 'यंग इंडिया' में उसका एक छोटा-सा उत्तर देनेकी कोशिश करूँ तो उसे ज्यादा पाठक — मेरा मतलब मेरे लेखोंको पढ़नेके आदी पाठकोंसे है — पढ़ पायेंगे। सो मैंने 'यंग इंडिया' में उसका उत्तर छाप दिया है। मेरे पास जितना समय था उसमें मैं इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकता था। बेशक, आप अपने अखबारके लिए उसे उद्धृत कर सकते हैं। 'यंग इंडिया' के जिस अंकमें उत्तर[१] छपा है, उसकी एक प्रति मैं आपको निशान लगाकर भेज रहा हूँ।

हृदयसे आपका,

श्री किर्बी पेज
'वर्ल्ड टुमॉरो'
५२ वेंडरबिल्ट एवेन्यू
न्यूयॉर्क सिटी

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १४३६८) की फोटो-नकलसे।

 

  1. देखिए "युद्धके प्रति मेरा दृष्टिकोण", १३-९-१९२८।