दावा किया जाता है कि भारतकी जेलोंमें कैदियोंके साथ मानवीयतापूर्ण व्यवहार किया जाता है और इन जेलोंमें कैदियोंका यथासम्भव अधिक से अधिक खयाल रखा जाता है।
निदेशककी विज्ञप्ति में जो तथ्य-सम्बन्धी बातें कही गई हैं, उनके उत्तरमें तो जेलसे छूटे कैदियोंके बयानोंके अंश ही प्रस्तुत करना चाहूँगा। इनमें से प्रत्येकको मैं समस्त जेल-अधिकारियोंकी अपेक्षा अधिक विश्वसनीय मानता हूँ। इन सत्याग्रहियोंने जेलसे छुटकारा पानेके बाद अपना-अपना बयान मेरे अनुरोधपर ही दिया था। श्रीयुत चिनायके बारेमें मैं जानता था कि जेल जाने से पहले उनका स्वास्थ्य बहुत अच्छा था, मगर जेलसे लौटनेपर मैंने अपनी आँखों देखा कि उनका स्वास्थ्य तो बहुत गिर गया है। फिर मैंने विद्यापीठके दिनकर नामक एक छात्रको देखा जिसका ज्वर टूटनेका नाम ही नहीं लेता था और जेलसे निकलने के बाद उसे जो अच्छी सेवा-शुश्रूषा और ठीक ढंगकी चिकित्साका सौभाग्य प्राप्त हुआ वह यदि प्राप्त न हुआ होता तो उसका ज्वर उसके लिए घातक साबित हो सकता था। यह सब देखकर मैंने उन सबसे जेलमें किये जानेवाले व्यवहारके विषय में बतानेका अनुरोध किया। उत्तरमें उन्होंने ये बयान दिये।
सबसे पहले मैं वालोदके एक जाने-माने व्यक्ति श्रीयुत सन्मुखलालके बयानका अंश दे रहा हूँ। खराब भोजनके कारण उन्हें दो बार पेचिश हो गईं। उन्होंने जो-कुछ बताया, उसका एक अंश इस प्रकार है: