श्रीयुत सी॰ एल॰ चिनायने भी अपने बयान में यही किस्सा दुहराया है:
यहाँतक कि फौलादी शरीवाले श्रीयुत रविशंकर व्यासको भी अपने बयानमें यह कहना पड़ा:
श्रीयुत चिनायको शारीरिक श्रमके तौरपर ऐसा कड़ा काम दिया गया जो उनकी शक्तिसे बाहर था। इससे उन्हें अक्सर चककर आ जाता था, लेकिन बीस दिनोंतक उन्हें जरूरी दवा भी नहीं दी गई। कारावासके दौरान उनका वजन २० पौंड घट गया। इसी तरह गोविन्द गोसाईं, जिनका स्वास्थ्य सजा पानेसे पहलेसे ही खराब था, जेलसे निकलने तक इतने कमजोर हो गये थे कि वे अपने पैरोंपर ठीकसे खड़े भी नहीं रह पाते थे।
मेरे पास जो बयान हैं, उनके बहुत संक्षिप्त अंश ही मैंने यहाँ दिये हैं। यदि अधिकारीगण इस विषयमें सचमुच कुछ करना चाहते हों तो मैं उन्हें सारे बयान तथा अन्य जिन सबूतोंकी जरूरत हो वह सब भेजनेको तैयार हूँ। मेरा निश्चित विश्वास है कि सूचना-निदेशकने जिस तरहसे आरोपोंका खण्डन किया है उस तरहके खण्डनका जनतापर कोई असर नहीं पड़ता, और यह तो है ही कि उससे न कैदियोंकी अवस्थामें कोई सुधार होनेवाला है, और न जेलोंमें मानवीयताकी जो कमी है वही पूरी होनेवाली है। मानवीयताकी पहली शर्त यह है कि मनुष्यमें कुछ विनय हो, अपने आचरणके सही होनेके बारेमें मनमें कहीं थोड़ा संकोच शंका हो और दूसरोंकी बात सुनने-समझनेकी किंचित् तत्परता हो। मगर निदेशक महोदयने आरोपोंका जो खण्डन किया है, उसमें इन तीनोंका अभाव दीखता है।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २०-९-१९२८