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पत्र: एम॰ आर॰ जयकरको

 

महादेव आज शिमलासे लौटेगा। मुझे इस बातकी खुशी है कि शिमला जानेसे उसे थोड़ा आराम मिल गया और बँधी-बँधाई दिनचर्यासे थोड़ी फुरसत मिल गई। वैसे, उसने वहाँ बारडोली सत्याग्रहके सम्बन्ध में प्रकाशित होनेवाली अपनी आगामी पुस्तकके परिच्छेद जरूर लिख डाले। वल्लभभाई भी आज शिमलासे लौट रहे हैं, और स्वामी भी। मगर वे सब शिमलाके वातावरणसे ऊब गये हैं।

देवदास दिल्ली में है। कृष्णदास बिहारमें रामविनोदके साथ है। प्यारेलाल और सुब्बैया यहाँ हैं। मीराबहन अगले सप्ताह कुछ दिनोंके लिए दौरेपर जा रही है। वह खादी-भण्डारोंको देखना चाहती है। मैं पूरी आशा रखता हूँ कि तुम वहाँ शक्तिसे बाहर काम नहीं करोगे।

साथमें इटलीसे आये कुछ पत्र भेज रहा हूँ।

सस्नेह,

मोहन

श्री सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूज
१२, गोवर स्ट्रीट, लन्दन, डब्ल्यू॰ सी॰ १

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ २६३०) की फोटो-नकलसे।

 

३३१. पत्र: एम॰ आर॰ जयकरको

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
२१ सितम्बर, १९२८

प्रिय जयकर,

आपका पत्र मिला। आपके सामने जो प्रस्ताव रखा गया है, उसके बारेमें महादेवने मुझसे चर्चा की है। उसने मुझे एक छोटा-सा पत्र भी भेजा है, लेकिन कहा है कि उसके यहाँ आ जानेके बाद ही मैं उत्तर दूँ। इसलिए इस सम्बन्धमें अभी कुछ न करना मेरे लिए सम्भव हो सका है और पूरी तरह विचार करनेके बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि आपको यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं करना चाहिए। मेरा खयाल है कि वाइसरायको शास्त्रीके[१] उत्तराधिकारीके बारे में खुद उन्हींसे परामर्श करना चाहिए; लेकिन यदि वे वैसा नहीं करते तो महाराज कुँवर सिंहको जाना चाहिए। यह काम बहुत कठिन है और इसे वही कर सकता है जो हृदयसे मानता है कि ब्रिटिश साम्राज्यके साथ सम्बन्ध रखना अच्छा है और इसलिए इसे कायम रखना चाहिए। इस मान्यताके पीछे जो तर्क है, उसे समझा पाना मुश्किल है, लेकिन मुझे भरोसा है कि मेरा दृष्टिकोण समझने में आपको कोई कठिनाई नहीं होगी।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १९९५) की फोटो-नकलसे।

 

  1. वी॰ एस॰ श्रीनिवास शास्त्री, जो उन दिनों दक्षिण आफ्रिकामें भारत सरकारके एजेंट जनरल थे।


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