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अफसरोंका जुल्म

में उसी प्रकार अहिंसा निहित है जिस प्रकार डॉक्टर द्वारा की जानेवाली शल्यक्रियामें अहिंसा निहित रहती है।

३. यह दलील यहाँ लागू नहीं होती कि जो जीवन दे नहीं सकता उसे किसीका जीवन लेनेका भी अधिकार नहीं है तथा कोई किसी दूसरेके धर्मका नाश नहीं कर सकता। हिंसा अर्थात् निर्दयताको रोकनेके लिए ही उपर्युक्त दलील दी जा सकती है। जिस व्यक्तिकी अहिंसा-वृत्तिके बारेमें हमारे मनमें कोई शंका ही न हो उसके खिलाफ ऐसी दलील देना अपने-आपमें हिंसक कार्य है। क्योंकि इससे अहिंसक वृत्तिवाला, यदि वह असावधान हो तो, उलझनमें पड़ जायेगा और कदाचित् अहिंसा-धर्मका पालन नहीं कर सकेगा।

४. प्रस्तुत कृत्य में निहित अहिंसाको समझनेके लिए तीन बातें ध्यान में रखनी आवश्यक हैं: १) वध-मात्र हिंसा है, यह मानना अज्ञान है। २) जिस प्रकार वध करनेमें हिंसा है उसी प्रकार जिसे हम वधकी अपेक्षा हलका दुःख मानते हैं, उसमें भी हिंसा है। ३) हिंसा और अहिंसा आखिर तो मन और भावनासे सम्बन्ध रखती हैं। उदाहरणार्थ क्रोधमें मारा गया तमाचा विशुद्ध हिंसा है किन्तु जिसे साँपने काट लिया हो उसे जगाये रखनेकी खातिर मारा गया तमाचा शुद्ध अहिंसा है।

इसीमें से और भी बहुत-सी दलीलें दी जा सकती हैं। केवल धार्मिक दृष्टिकोणसे यदि मुझसे विशेष रूपसे कुछ पूछना चाहो तो अवश्य पूछना। तुम इस पत्रका जहाँ जो उपयोग करना चाहो कर सकते हो। मुझे तो धर्मकी खोज करनी है, उसे जानना है और उस पर आचरण करना है। यदि मैं ऐसा नहीं कर पाता तो एक साँस भी अधिक लेनेकी मेरी इच्छा नहीं है।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती (एस॰ एन॰ ११८११) की माइक्रोफिल्मसे।

 

३४२. अफसरोंका जुल्म

धोलका ताल्लुकेसे एक संवाददाता लिखता है:[१]

इस तरहका जुल्म अगर भारतवर्ष में नहीं तो गुजरातमें तो अवश्य ही एक आश्चर्य की बात होनी चाहिए। यह उचित है कि धोलका ताल्लुका-समितिने जुल्मको दूर करनेका काम अपने सिर लिया है। कांग्रेसकी समितियाँ ऐसे काम करनेके लिए बाध्य हैं। किन्तु कलेक्टरके पास शिकायत करना या न्यायके लिए अदालतमें जाना, इस दिशा में किये जानेवाले कामोंमें कमसे-कम महत्त्वका काम है। जहाँ अनिवार्य हो वहाँ ऐसा भले ही किया जाये। किन्तु सच्चा काम तो वह है जैसा बारडोलीमें किया गया, यानी लोगोंके बीच रहकर उन्हें निर्भयताकी शिक्षा दी जाये। यह शिक्षा

 

  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें पुलिस द्वारा एक अनाथ बालकके पीटे जाने तथा धोलका ताल्लुका के किसानोंपर हो रहे अत्याचारका वर्णन था।