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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सिर्फ भाषणोंसे नहीं, खुद निर्भय रहकर लोगोंमें निर्भयताकी लगन जगाकर दी जाती है। ऐसी लगन जगानेके लिए लोगोंमें कुछ आवश्यक रचनात्मक कार्य होने चाहिए। उनके बिना लोगोंके साथ सम्पर्क नहीं साधा जा सकता, उनके जीवनमें प्रवेश नहीं किया जा सकता, उनका विश्वास – सम्पादन नहीं किया जा सकता। यह बात दिनों-दिन अधिक स्पष्ट होती जाती है कि अपने क्षेत्रमें बसनेवाले प्रत्येक कुटुम्बसे सम्बन्ध जोड़नेके लिए खादी-कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण है। ऐसा काम करते हुए तलाटी और पुलिसके भी संसर्गमें आना चाहिए। वे भी कपड़ा पहनते हैं। उनतक भी खादीका सन्देश पहुँचना चाहिए। पुलिस और तलाटियोंके जुल्मोंका निवारण उनके हृदयको स्पर्श करने से हो सकता है। पुलिसके एक आदमी या किसी तलाटीको दण्ड मिल जाये तो उससे जुल्म बन्द नहीं हो सकता। किन्तु यदि नौकरी करते हुए भी उन्हें ऐसा भान हो कि हम लोगोंके मित्र या सेवक हैं, तो उनका बरताव बदल सकता है। बारडोलीके लोग निर्भय इसलिए बन सके थे कि स्थानीय पुलिस और तलाटी उनके मित्र हो गये थे। दण्ड देने अथवा बरखास्त करवा देनेकी बनिस्वत बहिष्कार कहीं अधिक प्रभावशाली अस्त्र है, किन्तु उसका प्रयोग केवल निर्भय मनुष्य ही कर सकते हैं। इसलिए धोलका ताल्लुका-समितिको मेरी सलाह है कि अदालत अथवा कलेक्टरसे न्याय करवानेका काम अनिवार्य हो तो उसे जारी रखते हुए भी वह लोगोंको निर्भय बनानेका काम जोरसे और धैर्यपूर्वक करे। जब वह ऐसा करेगी तो उसे अनुभव होगा कि कचहरीका काम और रचनात्मक काम एक साथ नहीं हो सकते। एकको साधनेसे दूसरेसे मुँह मोड़ना पड़ेगा। जहाँपर लोग बहुत दबे हुए और भयभीत रहते हों, वहाँ कार्यके आरम्भ-काल में प्रसिद्ध नेताओंको ले जाना और लोगोंसे उनका परिचय कराना शायद आवश्यक हो।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २३-९-१९२८

 

३४३. खादीकी स्वावलम्बन पद्धति

'बिजोलियामें खादी-कार्य' नामक जो लम्बा लेख इस अंकमें दिया है, उसकी ओर मैं पाठकोंका ध्यान खींचता हूँ। श्री जेठालाल गोविन्दजीने इसे जिस रूपमें लिखकर भेजा है—भाषा-सम्बन्धी सामान्य परिवर्तनोंके साथ — उसी रूपमें वह प्रकाशित किया जा रहा है। मैं आशा करता हूँ कि पाठक लेखकी लम्बाई देखकर नहीं चौंकेंगे। हमारे पास बहुत थोड़े-से इने-गिने जो खादीके पीछे पागल लोग हैं, उन्हीं में से एक श्री जेठालाल हैं। 'गीता'की परिभाषामें खादीके पीछे पागल व्यक्तिको हम स्वकर्म-निरत कहेंगे। परमार्थकी दृष्टिसे ग्रहण किये हुए अपने कार्यमें लीन लोगोंकी देशको बहुत जरूरत है। इसके अलावा बिजोलियाके खादी-कार्यमें और जगहोंकी अपेक्षा बहुत जल्दी सफलता मिली है। ऐसी सफलता किस प्रकार मिली, किस हद तक मिली — यह जानना प्रत्येक खादी-कार्यकर्ताका कर्त्तव्य है। यही सोचकर मैंने यह