लेख पूरा-का-पूरा छापा है। पाठक यह स्पष्ट रूपसे देख सकेंगे कि इस कार्यके मूलमें खादीकी अविचल भक्ति और उससे उत्पन्न दृढ़ता और धैर्य है। लेखका यह भाग सबके याद रखने लायक है:
ऐसे चुस्त आदमी ही जाड़ेमें सवेरेका कड़कता जाड़ा, गर्मीमें दुपहरीकी चिलकती लू, चौमासेमें मूसलाधार वर्षा और बीच-बीचमें कीचड़को प्रसन्नतापूर्वक सहन करते और लोगोंको खादीका सन्देशा पहुँचाते हैं। किसानोंके लिए जो आरामका समय होता है, श्री जेठालालके शब्दोंमें खादीका काम करनेवालोंके लिए वह 'कामका मौसम' होता है और कामकी सफलता तो कामके मौसममें ही काम करनेमें निहित होती है।
[गुजरातीसे]
नवजीवन, २३-९-१९२८
३४४. बम्बईका राष्ट्रीय विद्यालय
देशमें अँगुलियों पर गिनने लायक जो राष्ट्रीय विद्यालय अभी चल रहे हैं वे ऐसे लगते हैं जैसे उजाड़ और निर्जल रेगिस्तानमें कोई छोटा-सा जलाशय हो। ऐसे ही विद्यालयोंमें से एक बम्बईका राष्ट्रीय विद्यालय है। इस विद्यालयको अनेक संकटोंका सामना करते हुए काम करना पड़ता है और इस समय भी उसके सामने संकट मौजूद हैं। इन संकटोंमें मुख्य संकट पैसेका है। विद्यापीठके नियम बहुत कठोर होनेके कारण ऐसे विद्यालयोंको उसमें पूरी तरह समाविष्ट करनेमें बाधाएँ हैं। विद्यापीठका एक नियम यह है कि जिस विद्यालयके शिक्षकोंमें स्वयं धन एकत्रित करनेकी सामर्थ्य न हो उन्हें कोई सहायता न दी जाये। यदि विद्यापीठको किसी दिन स्वावलम्बी बनना है, तो उसे इस नियमका पालन दिन-प्रति-दिन अधिक कठोरतासे करना ही चाहिए। यहाँ 'स्वावलम्बी' होनेका अर्थ समझ लेना आवश्यक है। स्वावलम्बीका अर्थ है आचार्यसे लेकर दूसरे अध्यापक तक सभी इतने प्रतिष्ठित हों कि उनकी प्रतिष्ठाके बलपर विद्यालय अपना खर्च आसानी से चला सके। ऐसे विद्यालयके विद्यार्थी विद्यालयके खर्चके