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३५०. 'चौंकानेवाले निष्कर्ष'

प्रकाशककी प्रस्तावनाके अनुसार, विलियम आर॰ थर्स्टन अमेरिकाकी सेनामें मेजर थे। अमेरिकी सेनामें उन्होंने लगभग दस वर्षतक काम किया। इस अवधिमें उन्होंने दुनिया के अनेक भागों में, जिनमें चीन भी शामिल है, विविध प्रकारके अनुभव प्राप्त किये। अपने प्रवास के दौरान उन्होंने विवाह-सम्बन्धी कानूनों और रिवाजोंके समाजपर पड़नेवाले असरका अध्ययन किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें विवाहपर एक पुस्तक लिखनेकी प्रेरणा हुई। इस पुस्तकका नाम 'थर्स्टन्स फिलॉसफी ऑफ मॅरेज' है, जिसे पिछले वर्ष न्यूयॉर्कके टिफेनी प्रेसने प्रकाशित किया। वह बड़े टाइपके केवल ३२ पृष्ठोंकी पुस्तिका है, जो एक घंटेके अन्दर पूरी पढ़ी जा सकती है। लेखक इस विषयकी विस्तृत दलीलोंमें नहीं उतरे हैं; उन्होंने अपने निष्कर्षोंके लिए आवश्यक कुछ थोड़ी-सी दलीलें ही दी हैं और फिर अपने निष्कर्ष सामने रख दिये हैं। प्रकाशकने इन निष्कर्षोको 'चौंकानेवाले' कहा है, जो ठीक ही है। अपनी भूमिकामें लेखक यह दावा करते हैं कि इन निष्कर्षोपर वे "व्यक्तिगत निरीक्षण, चिकित्सकों से प्राप्त तथ्यों, सामाजिक आरोग्य विज्ञानके आँकड़ों तथा चिकित्सा-सम्बन्धी आँकड़ों" के आधारपर पहुँचे हैं। ये तथ्य और आँकड़े उन्होंने युद्धकालमें इकट्ठे किये थे। उनके निष्कर्ष ये हैं:

१. प्रकृतिका यह नियम कभी नहीं रहा कि स्त्री अपनी रोटी और निवास तथा सन्तान उत्पन्न करनेके अपने प्राकृतिक अधिकारपर अमल करने के लिए किसी पुरुषके साथ जीवन-भर बँधी रहे और रोज रातको एक ही बिस्तरपर उसके साथ सोते अथवा एक ही घरमें उसके साथ रहने के लिए मजबूर हो।
२. पुरुष और स्त्रीका हर रात एक साथ सोना विवाहके वर्तमान नियमों ओर रिवाजोंका परिणाम है। यह स्थिति अनियंत्रित विषय-भोगकी प्रेरणा देती है; इससे पुरुष और स्त्री दोनोंकी सहज वृत्तियाँ विकृत हो जाती हैं और ९० प्रतिशत विवाहित स्त्रियाँ आंशिक रूपसे वेश्याओं-जैसा जीवन बिताती हैं। यह स्थिति इसलिए पैदा होती है कि विवाहित स्त्रियोंके मनमें यह विश्वास भरा गया है कि उनका यह वेश्यापन कानून-सम्मत होने के कारण उचित और स्वाभाविक है तथा उनके प्रति उनके पतियोंका प्रेम कायम रहे, इसके लिए आवश्यक है।

इसके बाद लेखक "सतत और अनियंत्रित विषय-भोग" के परिणामोंका वर्णन करता है, जिसका सार मैं नीचे देता हूँ:

(क) इससे स्त्री में स्नायविक दुर्बलता आ जाती है; वह समय से पहले बूढ़ी हो जाती है; उसका शरीर रोगका घर बन जाता है; वह चिड़चिड़ी हो जाती है; उसका मन अशान्त रहने लगता है; उसमें असन्तोषकी भावना पैदा हो जाती है, और वह भली भाँति अपने बच्चोंकी भी सार-सँभाल करने लायक नहीं रह जाती।