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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। इसमें कोई शक नहीं कि पुरुष या स्त्रीके स्वभावमें पाई जानेवाली अधिकतर काम-वासना इस धर्म स्वीकृत अन्धविश्वासका फल है कि विवाहित स्त्री-पुरुषोंको अनिवार्यतः एक ही कमरे और एक ही बिस्तरका उपयोग करना चाहिए। इसने समाजमें ऐसी मनोवृत्ति उत्पन्न कर दी है जिसके खतरनाक असरका अनुमान लगाना हमारे लिए, जो इस अन्धविश्वास द्वारा पैदा किये हुए वातावरणमें ही रहते हैं, कठिन है।

जैसा कि हम देख चुके हैं, लेखक गर्भ निरोधक उपायोंके भी उतन ही खिलाफ हैं।

मद्रासके उद्यमी प्रकाशक एस॰ नटेसनने भारतमें वितरणके लिए इस पुस्तिकाके पुनर्मुद्रणकी स्वीकृति लेखकसे प्राप्त कर ली है। यदि वे ऐसा करते हैं, तो पाठक उसकी प्रतियाँ बहुत थोड़े पैसोंमें प्राप्त कर सकेंगे। उन्होंने अनुवादके अधिकार भी प्राप्त कर लिये हैं।

लेखकने जो अनेक दूसरे उपाय सुझाये हैं, उनका मेरी रायमें हमारे लिए कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है, और उनके लिए कमसे-कम कानूनकी स्वीकृति तो आवश्यक है ही। परन्तु प्रत्येक पति और पत्नी आजसे ही यह दृढ़ निश्चय कर सकते हैं कि वे रातमें कभी एक कमरेका या एक बिस्तरका उपयोग नहीं करेंगे और मनुष्य तथा पशु दोनोंके लिए निर्धारित प्रजोत्पत्तिके एकमात्र उदात्त हेतुके सिवा दूसरे किसी हेतुसे विषय-भोग नहीं करेंगे। पशु इस कानूनका पालन निरपवाद रूपसे करता है। मनुष्यको चुनावकी छूट होनेसे उसने गलत चुनाव करनेकी भयंकर भूल की है। प्रत्येक स्त्री गर्भ निरोधक उपादानोंका प्रयोग करने से बिलकुल इनकार कर सकती है। पुरुष और स्त्री दोनोंको जानना चाहिए कि काम-वासनाकी तृप्ति न करनेसे कोई रोगी नहीं हो जाता, बल्कि उससे उसका स्वास्थ्य और शक्ति बढ़ती है, बशर्ते कि मनुष्यका मन उसके शरीरके साथ सहयोग करे। लेखकका विश्वास है कि विवाह-सम्बन्धी वर्तमान कानून ही "आजकी दुनियाकी अधिकतर बुराइयोंके लिए जिम्मेदार हैं।" मेरे सुझाये हुए दो अन्तिम निष्कर्षोपर पहुँचनेके लिए यह जरूरी नहीं है कि कोई लेखकके इस अति व्यापक विश्वाससे सहमत ही हो। परन्तु इसमें कोई शक नहीं कि यदि हम स्त्री-पुरुषके सम्बन्धोंको स्वस्थ और पवित्र दृष्टि से देखें तथा भावी पीढ़ियोंके नैतिक कल्याण के लिए अपनेको जिम्मेदार मानें, तो आजके बहुत-से दुःख-दर्द टल सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २७-९-१९२८