पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

केन्द्रों में काम कर रहे हैं। और "चूंकि खादी संगठन स्वभावतः उस केन्द्रबिन्दुका काम करता है जिसके इर्द-गिर्द राष्ट्र निर्माण में सहायता देनेवाली संस्थाएँ पनपती हैं", इसलिए आश्रम द्वारा स्थापित खादी केन्द्रोंकी छत्रछायामें बहुत से वाचनालय, पुस्तकालय, प्रारम्भिक पाठशालाएँ, व्यायामशालाएँ तथा अन्य समाज सेवी संगठन पनप रहे हैं। इस समय मैं चिकित्सा विभाग, अस्पृश्यता निवारण एवं राष्ट्रीय शिक्षा आदिका रुचिकर ब्योरा न देकर पाठकोंसे इस रिपोर्टको पढ़नेका ही अनुरोध करूंगा। रिपोर्टमें कहा गया है कि यदि आश्रमके विकासको जारी रखना है तो इसके विभिन्न विभागोंके लिए इसे आर्थिक सहायताकी आवश्यकता है। कुल ६१ हजार रुपयेका अनुमान लगाया गया है, जिसमें से १०,००० की आवश्यकता रँगाई विभाग के लिए है, ४०,००० खादी-कार्यके विस्तारके लिए, ३,५०० कृषिके लिए, २,५०० दुग्धशालाके लिए और ५,००० उन अतिरिक्त इमारतोंके लिए जिनकी आवश्यकता अभय आश्रम-जैसी विकासमान संस्थाको सदैव रहती है। कहना न होगा कि अधिकांश कार्यकर्ताओंको मुश्किलसे जीवनयापन-भरको मिलता है। वास्तव में आश्रम बलिदानकी भावनाका प्रतीक है — उस भावनाका, जिससे बंगाल शायद सभी प्रान्तोंसे अधिक अनुप्राणित है। मैं पाठकों को रिपोर्टकी प्रतियाँ प्राप्त करके पढ़ने और इस महान् संस्थाको जितनी सहायता दे सकें, देनेके लिए आमन्त्रित करता हूँ।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २७-९-१९२८

 

३५३. पत्र: मीराबहनको

[२८ सितम्बर, १९२८][१]

चि॰ मीरा,

अभी तो तुम्हें सिर्फ यह बतानेको लिख रहा हूँ कि तुम्हारा पत्र मिल गया। क्या तुम्हें मालूम है कि जमनालालजी के पिता नहीं रहे? अबतक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। आशा है, कल हो जायेगा। चूल्हा तैयार हो गया है। छोटेलाल अब बेहतर है।

सस्नेह,

बापू

श्रीमती मीराबाई
आश्रम, हटूंडी
अजमेर (राजपूताना)

सी॰ डब्ल्यू॰ ५३०९ तथा जी॰ एन॰ ८१९९ से भी।

सौजन्य: मीराबहन

 

  1. डाकको मुद्दरसे।