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३५४. 'पावककी ज्वाला'[१]

अहिंसक प्राण-हरण

गोसेवा संघकी ओरसे सत्याग्रहाश्रममें आदर्श दुग्धालय-चर्मालय चलानेका प्रयोग कर रहा है। उसके सम्बन्धमें क्षण-क्षणमें धर्म-संकट आ खड़े होते हैं। अगर आश्रमका आदर्श केवल अहिंसाके ही मार्गसे सत्यकी शोध करनेका न होता तो ये संकट सामने नहीं आते।

कुछ दिन हुए, आश्रमका एक बछड़ा, जो अपंग हो गया था, कष्टसे बिलकुल बेहाल हो गया। पशु-चिकित्सककी सलाह के अनुसार उसकी चिकित्सा कराई गई। किन्तु जब उन्होंने उसके जीनेकी आशा छोड़ दी और जब हमने भी देखा कि वह कष्टसे छटपटा रहा है और करवट बदलवाने में भी उसे बड़ा कष्ट हो रहा है तब मुझे लगा कि ऐसी स्थितिमें इस बछड़ेके प्राण लेना ही धर्म है, अहिंसा है। मैंने साथियों से सलाह की। उनमें से अनेकने मेरी रायका समर्थन किया। फिर सारे आश्रमके लोगोंसे बातें की। उनमें से एक भाईने पर्याप्त तर्क देकर इसका सख्त विरोध किया और उसकी सेवा करनेका भार स्वयं अपने सिर लिया, और प्राणहरण किये जानेके क्षण तक वे उसकी सेवा करते रहे। उसपर मक्खियाँ न बैठने देना भी एक बड़ा काम था – आश्रमकी कई बहनोंने इस काममें उनका हाथ बँटाया।

उक्त भाईका तर्क यह था कि जो प्राण देनेकी शक्ति नहीं रखता, वह प्राण ले भी नहीं सकता। मुझे यह दलील इस जगह मौजूँ नहीं लगी। स्वार्थ भावनासे किसीका प्राणहरण किया जाये तो यह दलील लागू हो सकती है। अन्तमें दीन भावसे किन्तु दृढ़तापूर्वक पास खड़े होकर मैंने डॉक्टर द्वारा जहरकी पिचकारी लगवाकर बछड़ेका प्राणहरण किया। प्राण निकलने में दो मिनटसे कम समय लगा होगा।

मैं जानता था कि लोकमतकी आज जो स्थिति है, उसे देखते हुए, यह काम लोगोंको पसन्द नहीं आ सकता। इसमें उन्हें हिंसा ही दिखाई देगी।

किन्तु धर्म लोकमतका विचार नहीं करता। मैंने तो यह सीखा है, और अनुभवके द्वारा अपने लिए यही ठीक भी पाया है कि जिसमें मैं धर्म देखता हूँ, उसमें दूसरा कोई अधर्म देखे तो भी उसीका आचरण करना चाहिए। यह तो पूरी तरह सम्भव है कि जिसे हमने धर्म मान लिया हो वह अधर्म भी हो, किन्तु अनेक बार अनजानमें भूल किये बिना धर्मका पता नहीं चलता। अगर मैं लोकमतको मानकर या किसी दूसरे भयसे जिसे धर्म मानूं, उसका आचरण न करूँ तो धर्माधर्मका निर्णय

 

  1. आश्रम में बीमार बछड़ेको मरवा देनेपर अहमदाबादके कुछ लोग अत्यन्त क्षब्ध हो उठे थे और गांधीजी के पास क्रोधसे भरे सवालों और पत्रोंका तांता लग गया था। गांधीजी ने अहिंसाकी दृष्टि से इस लेखमें उसी प्रश्नकी छानबीन की है।