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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सबके परममित्र यमराज मौतको भेंटके रूपमें भेजकर मेरी अनिच्छासे ही सही फतवोंका यह क्रम बन्द कर देंगे।

मेरी गैरहाजिरी और हाजिरीमें मेरे सिद्धान्तोंको स्वीकार करनेवाले व्यक्तियोंका कोई समुदाय बहुमतसे निर्णय करे तो इसमें मुझे कुछ अनुचित दिखाई नहीं देता। किन्तु व्यक्तिको भाँति ऐसे समुदायोंमें भी धर्मकी भावना होनी चाहिए।

प्रश्न: विद्यापीठमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षाकी तीन कक्षाएँ हैं। इन्हींको क्रमानुसार अगर हम गाँवों, शहरों और समाजकी सेवाकी शिक्षाका नाम दें तो यह कहाँ तक उचित होगा?

उत्तर: मुझे तो प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षाके ये अर्थ जरा भी नहीं रुचते। हम यह क्यों चाहें कि गाँवोंके रहनेवाले प्राथमिक शिक्षा लेकर ही सन्तुष्ट हो जायें? उनमें से भी जो लोग माध्यमिक और उच्च शिक्षा लेना चाहें, उन्हें ऐसा करनेका अधिकार है। नगर निवासियोंके बालकोंका काम प्राथमिक शिक्षाके बिना नहीं चल सकता। तीनों प्रकारकी शिक्षाओंका उद्देश्य गाँवोंकी उन्नति होना चाहिए।

प्रश्न: आप संगीतको हमेशा इतना महत्त्व किस उद्देश्यसे देते हैं?

उत्तर: यह दुःखकी बात है कि आज इस देशमें सामान्य तौर पर संगीतकी अवगणना होती है। मुझे तो संगीतके बिना सारी शिक्षा ही अधूरी लगती है। संगीत व्यक्तिगत और सामाजिक जीवनको मधुर बनाता है। श्वास पर काबू पाने के लिए जैसे प्राणायामकी जरूरत है, उसी तरह कण्ठके विकासके लिए संगीतकी जरूरत है। यदि लोगोंमें सामाजिक संगीतका पर्याप्त प्रचार हो, तो सभाओंमें होनेवाले कोलाहलको शान्त करनेमें उससे बहुत मदद मिल सकती है। संगीत क्रोधको शान्त करता है और उसका सदुपयोग ईश्वरका दर्शन कराने में बहुत सहायक होता है। संगीतका अर्थ तान-पलटोंके साथ राग या नाटकके गीत गाना ही नहीं है। मैंने ऊपर संगीतका सामान्य अर्थ बताया है; उसका गहरा अर्थ तो यह है कि हमारा सारा जीवन संगीतमय, सुरीला होना चाहिए। सत्यादि गुणोंकी आराधना किये बिना जीवन ऐसा बन ही नहीं सकता। जीवनको संगीतमय बनानेका अर्थ है, उसे ईश्वरके साथ एकतार करना। जिसने राग-द्वेषका दमन नहीं किया है, जिसने सेवाके रसको नहीं चखा है, वह इस दिव्य संगीतको पहचानता ही नहीं है। जिस संगीतकी शिक्षा में इस गूढ़ अर्थका समावेश नहीं है, मेरे निकट उस संगीतका मूल्य बहुत ही कम है या है ही नहीं।

प्रश्न: चित्रकलाका तात्पर्य है चित्रकारके हृदय में उठनेवाली भावनाकी लहरोंको काव्यमय रेखाओं और रंगों द्वारा व्यक्त करना। अगर इस नयी व्याख्याको स्वीकार कर लिया जाये तो आप क्या उक्त चित्रकलाको राष्ट्रीय शिक्षणमें सभी जगह अनिवार्य स्थान देंगे?

उत्तर : मैंने कभी चित्रकलाका विरोध नहीं किया है। किन्तु मैंने चित्रकलाके नामपर प्रचलित मनमानीकी अवगणना हमेशा की है। मुझे इसमें शंका है कि प्रश्नमें दी गई व्याख्याके अनुसार चित्रकला सभीको सिखाई जा सकती है। संगीत और चित्र-