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गुजरातमें संगीत

सोना चाहिए। गरीबीके कारण जहाँ यह नितान्त असम्भव हो, वहाँ स्त्री-पुरुषको दूर और अलग-अलग बिस्तरों पर बीचमें किसी मित्र या सगे-सम्बन्धीको सुलाकर सोना चाहिए।

२. समझदार माँ-बाप अपनी लड़कीको ऐसे घरमें देने से साफ इनकार कर दें जहाँ लड़कीको अलग कमरा और अलग बिस्तर न मिल सके। विवाह एक तरहकी मित्रता है। बालकोंको ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए कि स्त्री-पुरुष सुख-दुःखके साथी होते हैं, किन्तु दम्पतिको विवाह होनेके बाद पहली ही रातको विषय-भोगमें पड़कर जिन्दगी बरबाद करनेकी नींव नहीं खोदनी चाहिए।

थर्स्टनकी शोधको स्वीकार करने के पीछे जो नई, आश्चर्यकारक, कल्याणकर, शान्तिप्रद कल्पना छिपी हुई है, उसपर मनन करना योग्य है और उसके अनुसार विवाह-सम्बन्धी चालू विचारोंमें हेरफेर होना चाहिए – यह समझना उचित है। ऐसा होने पर ही इस शोधका लाभ मिलेगा। जो इस शोधका महत्त्व समझ गये हों, वे अगर बाल-बच्चेवाले हों तो अपने लड़कोंकी तालीम और घरका वातावरण बदलें।

विषय-भोग भोगते हुए भी प्रजोत्पत्तिका निवारण करनेके जिन कृत्रिम उपायोंका भयंकर प्रचार आज चल रहा है, वह हानिकर है, यह भी थर्स्टनके निष्कर्षोंमें निहित है; किन्तु इतनी-सी बात समझनेके लिए थर्स्टनकी साक्षी या उसके समर्थनकी जरूरत नहीं होनी चाहिए। इन उपायोंका प्रचार हिन्दुस्तानमें हो सकता है, यही आश्चर्यकी बात है। यह बात मेरी अक्लमें नहीं आ पाती कि शिक्षित आदमी हिन्दुस्तानके शक्तिहीन वातावरण में ऐसे उपायोंकी सलाह किस तरह देते हैं।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३०-९-१९२८

 

३५६. गुजरातमें संगीत

पाठक जानते ही होंगे कि अहमदाबादमें कुछ वर्षोंसे संगीत-मण्डल काम कर रहा है। इस मण्डलके अध्यक्ष डॉ॰ हरिप्रसाद देसाई हैं और मन्त्री हैं संगीत-शास्त्री नारायण मोरेश्वर खरे। यह मण्डल गुजरातमें धीरे-धीरे अपना काम फैलाता जा रहा है। संगीतमें गुजरातका दरजा बंगाल, महाराष्ट्र और दक्षिणी प्रान्तोंकी अपेक्षा बहुत नीचा है, इस बातको सभी गुजराती जानते हैं और उन्हें जानना भी चाहिए। गुजराती पुरुष और स्त्रियाँ संगीत नहीं जानते, इतना ही नहीं, बल्कि गुजराती बालक और बालिकाएँ भी एक स्वरमें कोई सामान्य-सी कविता भी नहीं गा सकते। इसलिए यही माना जायेगा कि गुजरात में संगीतके प्रचारकी आवश्यकता है। इस सम्बन्धमें मतभेद नहीं हो सकता। फिर, जिस संगीतका प्रचार संगीत-शास्त्री खरे करते हैं वह नीतिवर्धक और ईश्वरकी प्रार्थनासे पूर्ण है।

यद्यपि अहमदाबादमें इस संस्थाको कुछ सहायता मिल जाती है; किन्तु यह जितनी चाहिए उतनी नहीं है। लोगोंने अभी इसकी आवश्यकताका ठीक अनुभव