पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 37.pdf/३७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

आइए, हम इस तर्कपर विचार करें। अध्यक्षने नगरपालिकाके कर्मचारियोंको अपने मापदण्डसे मापा है, और मुझे लगता है कि उन्होंने ऐसा करके कर्मचारियों और खादीके उद्देश्यके साथ भी घोर अन्याय किया है। उनका फतवा ठीक उस तरहका है जैसे कोई बड़ी ही नाजुक महिला अपनी खुदकी खुराकसे कठिन परिश्रम करने-वाले अपने कुछ अतिथियोंकी खुराकका अनुमान लगाये, या कोई चींटी किसी हाथीको आटेके कुछ दाने देकर सोचने लगे कि उसने अपने अतिथिको भरपेट भोजन करा दिया है। हम जानते हैं कि दोनोंका ही मानदण्ड गलत होगा। नाजुक महिला और चींटीका अनुमान ठीक होता, यदि उस महिलाकी अतिथि उसी महिला-जैसी कोई नाजुक महिला होती और चींटीको किसी दूसरी चीटीका आतिथ्य करना होता।

कराचीवाले मामलेमें अध्यक्ष द्वारा अपनाया गया मानदण्ड भी इसलिए गलत है कि नगरपालिकाके कर्मचारियोंका लालन-पालन उतने ऐशोआराममें नहीं हुआ, जितना कि प्रस्तावकका। अध्यक्ष द्वारा अपनाया गया मानदण्ड इसलिए दोहरा गलत हो गया है कि अव्वल तो मेहतरोंको उतने नफीस कपड़ोंकी जरूरत नहीं जितने कि अध्यक्षको चाहिए, और दूसरे, मेहतरोंको उसी तरहकी पोशाककी कोई जरूरत नहीं है जिस तरहकी पोशाक शिक्षित भारतीयोंने भय, अज्ञान, या महत्त्वाकांक्षावश अपने शासकोंकी नकलमें अपना ली है। मैं यह सुझानेकी घृष्टता करूँगा कि पार्षदोंको शोभा-शिष्टताके अपने विचार बदलने चाहिए और अपने कर्मचारियोंको ऐसे किस्म के वस्त्र देने चाहिए जो देशकी जलवायु और रहन-सहनके अनुकूल हों। तब उनको मोटीसे-मोटी खादीका प्रयोग करने में डरनेकी कोई जरूरत नहीं रह जायेगी। तब वे नगरपालिकाका पैसा बचाते हुए, कर्मचारियोंको अधिक सुविधाएँ दे सकेंगे, वास्तविक कलाका पुनरुद्धार कर सकेंगे और साथ ही उन गरीबसे-गरीब भाइयोंको भी लाभ पहुँचा सकेंगे जिनके पास वे केवल खादीके जरिये ही पहुँच सकते हैं। अध्यक्ष महोदय अपने प्रति जैसे व्यवहारकी अपेक्षा कर्मचारियोंसे रखते हैं, यदि वे उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहते हों तो उनको क्षण-भरके लिए उन कर्मचारियोंकी स्थितिमें अपने आपको रखकर देखना चाहिए कि उनको कैसा लगता है। तब उनका मानदण्ड बिलकुल सही हो जायेगा।

पर यदि मान लीजिए कि नगरपालिकाकी शान बनाये रखनेके लिए कर्मचारियोंको अस्वाभाविक ढंगकी पोशाक पहनना जरूरी ही हो तो कीमत देनेपर नगर-पालिकाको आजकल बढ़िया किस्मकी महीन खादी प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं होगी और इसके लिए आजकल खाकी रंगकी खादी भी मिल ही सकती है।

सबसे सस्ता और देशभक्तिपूर्ण तरीका तो यही होगा कि नगरपालिकाकी पाठशालाओंके बालक-बालिकाओंको महीन सूत कातना सिखाया जाये और स्वयं पार्षद