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प्राचीन भारतमें कताई

नहीं कर पाया जो आम तौरपर भोली-भाली जनताको धोखा देकर उसके हाथों घीके नामपर बेच दी जाती है।

चिकित्सा-शास्त्रके विशेषज्ञोंसे पूछताछ करके मैं जितना समझ पाया हूँ, उससे तो यही प्रकट होता है कि घी या पशुओंसे मिलनेवाली चिकनाईके स्थानकी पूर्ति वनस्पतिके किसी भी उत्पादनसे पूरी तौरपर नहीं की सकती, क्योंकि उनमें 'ए' नामक पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होता है, जो मनुष्यका स्वास्थ्य ठीक बनाये रखनेके लिए नितान्त आवश्यक है। इसलिए हम इस दुःखद (शाकाहारियोंके लिए) निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि चरबी-मिश्रित घी शाकाहारके सिद्धान्तकी दृष्टिसे तो बुरा है, परन्तु चिकित्साशास्त्र के दृष्टिकोणसे वह हानि-रहित है। श्रीयुत जमशेद मेहता-जैसे उत्साही आहार सुधारकोंके लिए तब एक ही उचित मार्ग रह जाता है कि वे शुद्ध घीको सर्वसुलभ बनाने के लिए जीतोड़ कोशिश करें और इस समान उद्देश्यको सफल बनाने के लिए मैं उनको गोसेवा संघमें शामिल होनेको आमन्त्रित करता हूँ। हाँ, यदि उनके पास इस उद्देश्यको प्राप्त करनेका कोई अन्य साधन हो और वह साधन ज्यादा जल्दी सफल भी हो सकता हो तो बात दूसरी है। वे कराची शहरमें दूध और घीका सम्भरण नगरपालिका के अधिकारमें ले लें और पूरी दक्षताके साथ नगरपालिकाकी ओरसे एक दुग्धालय चलायें। वनस्पति घीका तो हर कीमतपर बहिष्कार ही करना चाहिए। कारण, वनस्पति घीमें तो बहुधा मिलावट ही रहती है और वह मिलावटी घीके विपरीत बहुधा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होता है, क्योंकि वह रासायनिक प्रक्रियासे तैयार किया जाता है। इसके अलावा आहारके रूपमें तो वह लगभग हर तरहसे निकम्मा होता है। हमारे देशमें तिलहन प्रचुर मात्रामे उपलब्ध हैं। और उनसे निकाले हुए तेल कृत्रिम रूप से तैयार की गई वनस्पतीय चिकनाईसे कहीं अधिक गुणकारी होते हैं। वनस्पतीय चिकनाई अधिकतर नारियलसे प्राप्त चिकनाईसे ही तैयार की जाती है। भारतमें तो हर व्यक्ति चाहे तो स्वयं भी ताजे नारियलसे बढ़िया वनस्पति घी निकाल सकता है और बाजारमें नारियल काफी सस्ते मिल ही जाते हैं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, ४-१०-१९२८

 

३७०. प्राचीन भारतमें कताई

कोयम्बतूरके परम अध्यवसायी खादी-प्रेमी, श्रीयुत सी॰ बालाजीरावने डॉ॰ शामशास्त्री द्वारा किये गये (ईसा पूर्व ३२१-२९६ में विरचित) कौटिल्यके 'अर्थशास्त्र' के पाण्डित्यपूर्ण अनुवादसे निम्नलिखित रोचक उद्धरण[१] नकल करके मेरे पास भेजे हैं। ये उद्धरण उस कालके हमारे देशवासियोंके तौर-तरीकोंके बारे में अत्यन्त महत्वपूर्ण जानकारी देने के साथ ही यह भी सिद्ध करते हैं कि उस कालमें कताई-धन्धा सीधे राज्यके नियन्त्रण में था, जैसा कि आज भी होना चाहिए। हमारे देशमें जो

 

  1. इसका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है।