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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर्मकी गतिको रोकनेके मूढ़ प्रयत्नकी गन्ध आती है, फिर भी हम मानते हैं कि जो रोगीकी सेवा नहीं करता, उसे दवा नहीं देता, वह घोर हिंसा करता है। दैव और पुरुषार्थ के द्वन्द्व-युद्ध में शामिल न होते हुए जो-कुछ सेवा-कार्य हो सके, उसे कर लेना मैं धर्म मानता हूँ और उसके पालनका प्रयत्न करता हूँ।

मुझे ऐसा निश्चयात्मक ज्ञान तो नहीं था कि बछड़ा अब चंगा हो ही नहीं सकता। जिनसे डाक्टर निराश हो गये थे, ऐसे रोगियोंको चंगा होते हुए भी मैंने सुना है। महा अज्ञानमें पड़ा हुआ मनुष्य जहाँतक भविष्य के बारेमें अनुमान कर सके, वहाँतक करे और तदनुसार बरताव करे। असंख्य कर्मोके सम्बन्धमें हम ऐसा ही करते हैं। किन्तु पता नहीं, हिन्दू-संसारको क्या हो गया है कि वह मौतके नामसे ही भड़क उठता है। वैसे मौतका कमसे-कम, डर हिन्दूको ही होना चाहिए, क्योंकि हिन्दू धर्म में बचपनसे ही आत्माकी अमरता और शरीरकी क्षणभंगुरताकी शिक्षा दी जाती है। बछड़ेको मारने में यदि भूल हुई भी हो, तो भी मैं जानता हूँ कि उसकी आत्माकी तो कुशल ही है। उसके कष्टमें डूबे हुए शरीरका दो घड़ी पहले नाश करने में शामिल होने में अगर त्रुटि रही हो तो मुझे उसकी सजा भोगनेकी भी तैयारी रखनी चाहिए। किन्तु बछड़ेको जो दो घड़ी कम समयतक श्वास लेनेको मिला, मुझे इसका अपार दुःख नहीं होता। जो बात मैं बछड़ेके बारेमें कहता हूँ, वही अपने किसी प्रियजनके बारेमें भी कह सकता हूँ। कौन जानता है कि अपने लालन-पालनके ढंगसे, अपने मोहसे, अपने गलत इलाज से हम अपने कितने सगे-सम्बन्धियोंके प्राण समयसे पहले जाने देने में मददगार नहीं हुए होंगे? इस प्रकार उनके प्राणहरण में सहायक होना और बादमें रोना-धोना, यह तो दया-धर्मका पन्थ नहीं है। ऐसा करके हम अहिंसाको लजाते हैं। मुझे जो पत्र मिले हैं, वे मेरी यह राय दृढ़ करते हैं। मरणका भय अहिंसाको पहचानने में बड़ा भारी विघ्न है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-१०-१९२८
 

३७८. पत्र: गो० कृ० देवधरको [१]

सत्याग्रहाश्रम, साबरमती
७ अक्टूबर, १९२८

प्रिय देवधर,

यह पत्र आपको श्रीमती उर्मिलादेवीका परिचय देनेके लिए लिख रहा हूँ। स्वर्गीय चित्तरंजन दासकी अब यही एक विधवा बहन बच रही हैं। उनका एकमात्र पुत्र पूनाके कृषि कॉलेज में पढ़ रहा है। उसकी शिक्षाकी देख-रेख करने और उसके पास रहने के लिए उन्होंने कलकत्तासे अपनी गृहस्थी समेट ली है और अब पूनामें ही बस जाना चाहती हैं। मैंने उनसे कहा कि उनके लिए यह ज्यादा अच्छा रहेगा

  1. सर्वेंटस ऑफ इंडिया सोसाइटीके।